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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १३ राघो कहै अंतिकाल कीजियो मदति हाल,
बांचियो अंकूर अति उत्म लिलार के ॥२७ नमो लक्ष लक्षमी फ्लोटे प्रभुजी के पग,
राति दिन येक टग भक्तन की प्रादि है। रहै डर सहत कहत नमो नमो देव,
अलख अमेव तब देत ताकौं दादि है। जत बिन; सत बिन, दया बिन, दत्त बिन,
जीवन जनम जगदीस बिन बादि है। राघो कहै रामजी के निकटि रहत निति, आदि माया ऊँकार सहज समाधि है ॥२८
सिव जू को टोका इंदव द्वादस भक्त कथा सु पुरांनन, है सुखदैन बिबिद्धिन गायें । छद संकर बात घने नहि जांनत, सो सुनि के उर भाव समाये ।
सीत बियोगि फिर बन राम, सती सिव कौं इम बैंन सुनायें। ईसुर येह करौं इन पारिख, पालत अंग वसेहि बनाये ।।२२ सीय सरूप बना इन फेरउ, राम निहारि नहीं मनि आई। आइ कही सिव सूं जिम की तिम, अांच लगी खिजिकैं समझाई। रूप धरयौ मम स्वामिन को सठि, त्याग करयौ तन सोच न माई। भाव भरे सिव ग्रंथ धरे जन, बात सु प्यारनि रीझि क गाई ॥२३ जात चले मग देखि उभै धर, सीस नवावत भक्ति पियारी। पूछत गोरि प्रनाम कियो किस, दीसत कोउ न येह उचारी। बीति हजार गये ब्रखहु दस, भक्त भयो इक होत तयारी' । भाव भयौ परभाव सुन्यौ जन, पारबती लगि यो रग भारी ।।२४
अजामेल को टीका मात पिता सुत नाम धरयौं, अजामेल स साच भयो तजि नारी। पांन करै मद दूरि भई सुधि, गारि दयो तन वाहि निहारी। हासिन मैं पठये जन दुष्टन, आइ रहे सुभ पौरि सवारी।
संत रिझाइ लये करि सेवन, नांम नरांइन बालक पारी ॥२५ १. बयारी= रखि पण मैं मंढी मैं अस्त्री राखी। पीछे ब्राह्मण भयो। वन मैं गयो।
फूला मैं वेस्यां मेली।
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