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राघवदास कृत भक्तमाल श्री रंगजो की टीका श्रीरंग नाम सरावग जांम, हुतौ दिवसा तिन बात बखांनौं। चाकर हौ जम-धांम गयो उत', दूत भयो इन आइ लखांनौं। नाइक ने लय जात स देखहु, सींग बड़यो पसु मारि दिखांनौं । रांम भनें बिन है जग यौं गति, भक्त भयौ सिर अनंत रखांनौं ॥१७० पुत्र दिखावत भूत सरूपहि, सूकत जात सु बूझिक सूतौ । मारन ध्यावत रैनि उठे जन, माक्ष करौ मम भौत बिगूतौ । होत सुनार तिया पर सूरत, भूत हुवो तव पाव पहुंतौ। रांमहि नाम सुनाइ करचौ सुध, आप कही फिरि होइ न भूतौ ॥१७१
पैहारोजी कौ मूल छपै निरबेद दिपायौ कृष्णदास, अनत जिके पीयौ दुगध ॥टे०
बड़े तेज के पुंज, राम बल काम संघारे । चरणांबुज प्रात-पत्र, राव राजा सिरि धारे। जाकौं दक्षा दई, तास तलि कर नहीं कीयो।
सरणें पायो कोइ, ताहि नभै पद दीयो। बंस दाहिमैं रवि प्रगट, साध खुलै मुदि है मुगध । निरबेद दिपायौ कृष्णदास, अनत जिकै पीयौ दुगध ॥१५० कृष्णदास कलि-कालि मैं, दधीच ज्यूं दूज करी ॥ स्यंघ सरिण यौं जांनि, काटि तन मांस खुवायौ। भई पहुँन गति भली, जगत जस भयो सवायो। महा अपर बैराग, बांम कंचन तें न्यारे । हरि अंघ्री सुठ गंध, लेत अह-निस मतवारे । गाला-रिष प्राश्रम बिदत, रीति सनातन उर धरी।
कृष्णदास कलि-काल मैं, दधीच ज्यू दुजें करी ॥१५१ इंदव ज्ञान अनंत दयो अनतानंद, यौं प्रगट्यौ कृष्णदास पहारी। छंद जोग उपास्यौ जुगति सं तेजसी, अंतरवृति अक्यंचनधारी।
जाकै धरयो कर सीस कृपा करि, तास की भेट भीटी न निहारी। राघो बड़ी रहरणी मिल्यौ राम कौं, मोक्ष की पंथ निकाय के भारी ॥१५२
१. उन।
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