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चतुरदास कृत टीका सहित
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बय छोटी गुन हैं बड़े, जग में महिमा बिसतरी । जुगल बात खेमाल की, ते किसौर आदर करी ॥ ३३७
किसौर को टोका
इंदव छाड़त देह खिमाल भरे द्रिग, पूछत है सुत खोलि कहीजे । छंद देन कहौ जु भरयौ घर संपति, बात रही जुग सो सुनि लीजे ।
मांनि बड़ाइ समाइ रही वुधि, नांहि बनी मन पैं अब खीजे । सीस धरचौ कलसा जल नावत, नूपर साजि न निर्तत भीजे || ५४० होत सबै चुप कांम सु डीलहि, नाति किसौर को मम दीजे । बात करों जुग जोलग जीवत, ऊठि मिलै निहचं यह कीजे । धां चले सुख पाइ लयो पन, साधत है निति भाव सु भीजे । बै लघु भक्ति बड़ी बिसतारत, साधन सेवत है सब री
|| ५४१
छ
मूल फलत बेलि खेमाल की, मधुर महा श्रति पोंन फल ॥ पग्यौ प्रेम परपक्क, पथक पंक्षी जन पावत ।
हरीदास हद करी, हंस हरि-भक्त
लड़ावत |
कायक ।
पूजन
लाइक ।
हिरदौ कवल ।
मधुर
महा श्रति पोंन फल ॥ ३३७
रांम रोति वह प्रीति, अनन्य मन बाचक हरि प्यारे गुर रांम राघो साध निहारि कैं, फलत बेलि खेमाल की, प्रति उदार कलिकाल मैं, निर्मल नोबा खेतसी ॥ निति कथा निकेत, दरस संतन को पावें । गगन मगन गलतांन, उ भ्राता जस गावै । छाजन भोजन देइ, भक्ति दसधा के श्रागर । रामहि रटि राठौर भये, तिहुं लोक उजागर | जन राघो बढ्यौ अंकूर उर, हाथि चढ़ी निधि हेतसी । प्रति उदार कलिकाल में, निर्मल नीबा खेतसी ॥ ३३८ प्रेम मगन कात्याइनी, देत वारि तन के बसन ॥ गोपिन ज्यौं श्राबेस, हो गदगद सुर जगत प्रजा परपंच, रहत बैरागहु
ग्रीवां ।
सींवां ।
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तिनूं कूं प्रफुलत ह्वै
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