Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 288
________________ चतुरदास कृत टीका सहित [२१३ फूलन माल गरे पहिरावत, देत तिलक लगे अति प्यारे। . धांमहु में निकसे मनु खंचहि', साखत लोगन मारि पछारे ॥५७८ रांनिय की सुधि लेत भयौ नृप, है जु भलै त्रम होइ गयो है। राय करै परनाम परचौ धर, आय दया उन बैंन दयो है। भूप करै परनाम कही प्रभु, देखहु नैक कलाल लयौ है। भूप कही द्रिबिराज तुम्हारहि, लोभ नहीं पति स्यांम धयौ है ॥५७६ मांन र माधव नांव चढ़े नृप, सोच भयो जुग डूबन लागी। भ्रात कहै बड़ कौंन उपाइ स, छोटहु कैत तिया बड़भागी। ध्यान करयौ तब लेत किराडहि, जेठहि देखन चाहि सु लागी। श्राइ करयौ दरसन्न भयौ खुसि, गाथ अनूप हिये मध पागी ॥५८० मूल ____ करत कोरतन मगन मन, मथुरादास न मंगियौ ॥ हिरदै हरि बेसास, सील संतोष सु प्रासै । धर्म सनातन सुह्रिद, ज्ञान रवि करत उजासै। नंदकुवर सौं नेह, कुंभ धरि मस्तक ल्यावै । पर्चर्या नैवेदि, प्राचमन दे जल प्यावै । श्रीबर्द्धमान गुर की दया, रिसकराय रंग रंगियो । करत कीरतन मगन मन, मथुरादास न मंगियौ ॥४५५ टीका इंव बासति जारहि भक्ति करी रसि, वात करी इक तेउ सुनावै । छ। स्वांग धरें चलि आवत सालग-रांम सिघासन मांहि डुलावै । स्वामिन के सिष जाइ र देखत, भाव भयौ कहि है परभावै । आप चलो वह रीति बिलोकहु, के सरबज्ञ चलें दुख पावै ॥५८१ लै करि जात भये परि पाइन, फेरि फिरावत नांहि फिरै है। जांनि लयो इन कौ परतापहि, मारि चलो मन मांहि धरै है । मूठि चलावत भक्ति फिरावत, वाहि जरावत दुष्ट मरे हैं। होइ दबालहि जाइ जिवावत, लै समझावत हाथ धरे हैं ॥५८२ १. खंबहि। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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