Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 316
________________ १ चतुरदास कृत टीका सहित [ हरीदास पुनि पाटि, कोयो हरि घर प्रवेसौ। कान्हड़दास कल्याण, पुनहि परमानंद घमडी। रामदास हरदास, भक्ति भगवत की समडी। इम राघौ के रुचि राति दिन, भरणे भक्त भगवंत गुर। इम प्रम-पुरष प्रहलाद के, इतने सिष श्रब धर्म धुर ॥५२६ इम येक टेक हरि नांव की, हापाजी के सिषन के॥ टीके ऊधौदास, धर्म धीरज की प्रागर। रथि राघो के राम, बैठि उन कीयौ उजागर। दीरघ दिनन कल्याण, उदचंद ईस्वर अरजन । प्रानंद लाल दयाल, स्यांम गोबिन्द जस गरजन। तुरसी हैं हरिरांम, पुनह पारबती बाई। टीकू द्वै भगवान, सकल ग्यांनि गुर-भाई ॥५३० कृष्णदास मोहन मगन, अजमेरी ऊधौ रहै। गगन मगन खेलत फिर, जथासक्ति हरि हरि कहै। परमार्थ मै निपुन अति, प्राये कौं जल अंन दे। संतन को उर भाव बहु, सनमुख जाइ र धाम ले। ये करणी कृतब भले, ज्यू राजस बृति रिषन के। येक टेक हरि नांव की, हापाजी के सिषन की ॥५३१ मनहर भक्तवत्सल कौ उदाहरन रामजी की रीती असी प्रीति सुं खुसी है भया, ___ करमां की खीचड़ी आरोगनें को आये हैं। . त्यागे हैं प्रवास दुरजोधन के जांनि बूझि, बिदुर गरीब घरि साक पाक पाये हैं। विप्र सुदामा को दलिद्र दुख दूरि कीयौ, कूरी कन देखे प्रभु हेत सौं चबाई हैं। राघो कहै रामजी दयाल अंसे दीनन सू, .. भीलन के झूठे बेर पाप असे खाये हैं ॥५३२ भक्तबछल भगवंत देखौ संत काज, देह रोद्र हाल फेरचौ नामदे की टेर सू। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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