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भक्तमाल
२५६ ] पृष्ठ:१४२ पद्यांक २८९ के बाद
अथ जैन-दर्शन वर्णन चौवीस तिथंकर बीनहुं जन राघौ मन वच कर्म ॥
ऋषभ अजित अरु पदम चंद्र संभव सुबुद्धि मन । अभिनन्दन निम नेम सुमति शीतल श्रीहांसि गन । वासुपूज्य पारस्स अनन्तजी विमल धर्म धर ।
संत कुंथ अरिहंत सुमलजी मुनि सुव्रत धर । पारसनाथ मुनिहि प्रसिद्ध, जगवीर वर्धमान सुधर्म धर । चौवीस तिथंकर बीनहुँ, जन राघौ मन वच कर्म ॥७४४
अन्य मत पहुपदन्त प्रभु चन्द चन्द समि सेत विराजै । पारसनाथ सुपार्स हरित पन्नामय छाजै । वासुपुज्ज अरु पदम रक्त माणिक दुति सोहै।
मुनिव्रत अरु नेम श्याम, सुरनर मन मोहै। बाका सोलह कंचन वरन, यह व्यवहार शरीर-दुति । निहचै अरूप चेतन विमल, दरश ज्ञान चारित्र जुति ॥७४५
॥ इति जैन दर्शन समाप्त ॥ अथ जीवन दर्शन वर्णन :
छप्पय अनलहक मनसूर राबिया, हेतम शेष फरीद सुलतान । छन्द दास कबीर कमाल कमधुज, देखो साधना सेऊ समन ।
ए षट् गुण जित गलतान, विज्जुलीखां वाजीन्द बिहावदी कादन। महमूद संत भनि जन जमुला उसमान,अवलिय पीरौं दास गरीब गन । इन पंच पचीसों वश किए, हरि पिण्ड ब्रह्मण्ड विचि उरक की। जन राघौ रामहिं मिले, हद तजि हिन्दू तुरक की ।।७४६
फरोदजो का वर्णन मनहर माई कीन्ही परख ब्रती न हु छतोस वर्ष,
पीरका मुरीद कीन्हा फेरि के फरीद को। बारह वरष खाये पात दरखत जानै गात,
__ कै.न मानें बात खुदाई खरीद को।
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