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मक्तमाल
२६६ ] इन्दव स्वामि कह्यो जिन सोच करो हरि ध्यान करो प्रभु पूरण हारे। छन्द सामगरी गंज मांहि मंगाय रु भोग लगा हरि ता महि डारे।
रिद्धि अटूट भइ दिन सात लो जस भयो जग बाग अधारे। लोग मिरचि प्रसाद दिये जुग राघौ कहै गुरु बहुरि पधारे ।।९८४ देखि प्रताप जष्यो अति दुष्टहु कपट छिपाय रु स्वामि बुलाऐ। मारन को खरिण गाडिहि ढाँकत जानि गए चित नांहि डुलाए। काढ़ि तलाक चले ततकालहि लोहर खाड़त वेगि बुलाऐ। राधौ कहै खल कूप परे लखि गा करूना पद भौरि चलाऐ ।।६८५ वानि अकाश भई मम रूपहि आय मिलो हरि सैंन करी है । ढूंढि सथान निराने मकान जु राखि मनो मन चिन्त परी है । दास नरान निरानहु को नृप दे सुपनों हरि मत्ति हरी है। दक्षिन तें ततकालहि आय रु राघौ कहै गुरू-प्रीति खरी है ।।६८६ मन्दिर में पधराय रखे गुरु भीर भई तब बाहर आये। कोउ दिना तर पोर रहे पुनि शेष के साथ सु खेजर धाए। आयस तीन हुई हरि की तब तत्व मिलाए रु ब्रह्म समाए ।
राघौ कही बुद्धि के अनुमान सु दादुदयाल को पार न पाऐ॥९८७ पृ० १८६ पद्यांक ३७३ के बाद -
करतार सुनि करुणा जिनकी जन चारि विचारि रु ले घरि पाए। रीति बड़े की बड़े पहिचानत सार करी बहु भाँति जिंवाए। कपड़ा हथियार तुरी खरचि दई यो करिके घरिकों पहुँचाए।
राघौ कहै सति सुन्दरदासजी आवत ही मथुरा मधि न्हाए ॥१००० पृ० १८५ मूल पद्यांक ३६६ के बाद
सुन्दरदास वर्णन : मूल छप्पय गुरु दादू'बड़ | शिष्य भयो, लघु नृप बीकानेर को।
बादशाह करि हुक्म, पठायो काबलि जाई । जुद्ध करि धावां पडयो, समझि किन लियो उठाई। ताजा है राठौड तुरी चढ़ि मथुरा आयो। मिल्यो देश को लोग, सति समचार सुनायो। राघौ मिलि चतुरै कही, मग लै सांभरि सैर को। मुरु दादू बड़ शिष्य भयो, लघु नृप बीकानेर को ।।६६६
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