Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 360
________________ चनजी कृत भक्तमाल [२८५ सन्तदास अरु तेजा नन्दू। चरणदास नित करै अनन्दू । माधौदास रु रुकमाबाई। रूपानन्द के राम सहाई ॥७३ माधौ देव देवो गुजराती। प्रातम रहै परम रंग राती। देवेदर अरु मौनी कालो। श्यामदास मदाऊ वालौ ॥७४ ठाकुर मोहन घडसी सन्तू। पावन भये सु भज भगवन्तु । मगन भयो हरि को रंग राच्यो। स्वामी दादू आगे नाच्यो ।।७५ चतरो थलेचो रांमाबाई। सिख वीठल जीवौ सुखदाई । रैदास-वंशी दयाल सुधारे। नामा-वंसी टीकू सारे ॥७६ माधौ सन्तदास सिख गोपाल। हिरदै विराजै दीनदयाल । पूरणदास सुमति को धीरू। सिख चतरो साहिबखां राघौ हीरू ।। ७७ चत्रो भगवान भज करै विलासू। सुमर वनमाली हरिदासू । साधू कियो शुद्ध शरीरु। सतगुरु कृपा दई हरि धीरु ॥७८ सन्तदास सिख को अति सेवा। किये प्रशन्न परम गुरुदेवा। मोहनदास महा वैरागी। रहैं टहरडै हरि ल्यौ लागी ॥७६ सादो परमानन्द भगवन्त भज जाग्या। माधो खेम सु गुरु की आग्या। हरिसिंह सन्त-शिरोमणि सारु। सिख सपूत मोहन हुशियारु ॥८० धनावंसी चत्रदास सूरौ। हरि मारग में निविह्यो पूरो। जगदीशदास बाबो भगवानू । परम जोति में प्राण समानू ।।८१ देदो रहै घणी सूं दीन। गरीबदास प्रागै लै लीन । जगन्नाथ बाबा जपि जपि जागे। वणिक भगवान ब्रह्म के आगे ॥२ गिरधरलाल गंवार हरि साथू । नापा-वंसी तहाँ जगनाथू । सीधू सन्तदास वारा-हजारी। जैमल माधौ की बलिहारी ॥८३ गोविन्ददास वैद्य मऊ थानू। सिख सपूत माधौ भगवानू । जैदेव-वंशी गोविन्द दन। तिलोचन वंसी सुन्दर लीन ॥८४ सांभर भगवान राघौ जपियो। सैर पर चोखां की साला। तहाँ रहे दादू दीनदयाला ॥८५ जैमल को सिख सारंगदासू। सिख नारायण भक्ति प्रकासू । पोता सिख सो लालपियारो। सनमुख सदा सन्त निज सारौ ॥८६ हरिसू हित लपट्यो जगनाथू। अानदास सिख विचरै साथू । निर्गुण भोजन कियो न स्वादू। हिरदै न आन्यो। वाद-विवादू ॥८७ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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