Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
View full book text
________________
दोहा
Jain Educationa International
परिशिष्ट ३
चैनजी रचित भक्तमाल
सीस नाय वन्दन करूं, गुरु गोविन्द उर प्रानि । सकल संत को जोर कर, कहुं सु नवां बखानि ॥१ प्रसिद्ध भये जेते जपूं, छिपे सु रहे अनन्त । अनसुनियां सौ हेत अति, गुप्त कहया सोई सन्त ॥ २ ब्रह्मा विष्णु महेश शेष सनकादिक मारकंडे वगदालक मयूरवी गर्ग भजनानंद विकेसनि प्रवलंवारण नंद सुनंद प्रवीन क देख चंड प्रचंड पुनीत सुतौ प्रति निरमल शील सुशील सु सैन, भर्ज हरि लागौ रंगू ॥५ भद्र सुभद्र हरै पर पीरु, कमध कमदाक्षि अधारू ।
नारद । सुशारद ||३
अधारु ।
दीदारु ॥४ अंगू ।
सही सरवै सुख सूं सीरु ॥६ प्रीति, ग्रभिप्रन्तर परकासू ।
वासू ॥७
'
सगर भगर सत्यव्रत सिवरी सुमति धना, धरम में कीया रवि अध्यारक ऐलि, वलि सु अरपियो रुकमांगद हरिचन्द, ब्रत्त मांही मति ग्रहन्त निज शेष, भक्ति भागीरथ वालमीक मिथलेश, भरत कै राम गंधीर गज गनपणं, सुपारथ वोढा नील दधीचि, स्मृति भगौत तामरध्वज परचीन्ह, परीक्षत पाई व्ररणमृत प्रियव्रत भजै, स्वयंभू मनु ग्राह पृथु भीषम मनु भूप, सुग्रीव सुदामा विप्र अनूप । अगस्त पुलस्त्य कमला ध्यांन, मन्दालसा प्रचेता जांन ॥१२
हरखू ॥ ११
For Personal and Private Use Only
सरीरु ।
धीरु ॥८
पाई ।
सहाई ॥
पहचाणी |
वखांणी ॥१०
परखू ।
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364