Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 343
________________ २६९ ] भक्तमाल उर वैराग अपार, सार ग्राही गुण सागर । निहकामी निर्दोष मोष मारग मधि नागर । पाय परमपद विमल, विज्ञ गयो भानि भय काल को। मरदनियाँ की छाप शीष शिष्य चतुरदास दयाल को ॥१०३३ चतुरदास चोकस चतुर, धीर वीर धुव धर्मधर ॥ गुरु सेवा को नेम, प्रेम नित नूतन लायो। भजन ध्यान की खान. ज्ञान उर उडिग्ग सवायो। गुरु दादू प्रताप पाप, दुष यु दोष निवारे। रह्यो न संसो कोय, काज सब सुघर संवारे । पुर संग्रावट वास वसि, मिले ब्रह्म सुख सिन्धुवर । चतुरदास चौकस चतुर, धीर वीर ध्रुव धर्मधर ।।३४ पृ० १६५ पद्यांक ४०८ के बाद साधूजी का वर्णन इन्दव दादूजी दीन दयालु के पंथ में साधुजी साध शिरोमणि सारो। छन्द बड़ो भजनीक भगति को पुंज हो ज्ञानी महा करतूति करारो। गवं नहीं गलतान मतो गहयो धर्म की टेक निवाहनहारो। शीश सर्वस दियो जगदीश हि राघौ रहयो जग सेति नियारों ॥१०४१ मनहर छन्द भगति को पुंज भजनीक बड़ो शूरवीर, प्रासन विभूति साधे साधू साध सारो है। बालापन मांहि जाके विरह अत्यन्त बढि, प्रभु-रुचि प्रीति गढि लग्यो सब खारो है। आवे कोऊ वेदमात बूझै हित धाय धाय, रोग को गमावै मोहि भयो सोच भारो है। काहू शिष्य स्वामोजी को पद गायो सुनि धायो, राघौ गुरू बैद मिले कियो निर्विकारो है ॥१०४२ प्रासन को दिढ कर साल मधि ध्यान धर, विश्वरूप व्यापक में गलत जू भीनो है। काहू नर विना ज्ञान म्है कीकै लगाई चोट, आपने जुलई वोट, उघरी है सोट तन एक ब्रह्म चीनो है । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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