Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 342
________________ परिशिष्ट १ [ २६७ पृ० १६० पद्यांक ३६० के बाद - इन्दव माँहि रहाय रु बार मुंदाय सु प्राण चढाय समाधि लगाई। छन्द मारि विलाय लै माँहि नखाय कही द्विज जाय न होय भलाई। माँहि मुवो सिध होय लिख्यो विधि वासि उठ्यो सुनि राय रिसाई। राय रिसाय दियो वलि वायक हयो सिष आप जु खाज गँवाई ॥१०१७ अरेल श्रीफल चन्दन तूप चिता विधि सों करी । अगनि सु दई लगाय देह अति परजरी। ब्रह्मड फूटि सुशब्द होत रंकार रे। परिहां राघौ खल भये फट राय दृग धार रै ॥१०१८ पृ० १६० पद्यांक ३६१ के बादमनहर काशी को पण्डित महानाम जग-जीवन, सुदिग्गविजै कृत आम्बावती सु पधारे हैं। सुने दादू सन्त बड़ दर्शन को गयो तट, ___ चर्चा को उभावो अति पण्डित जु हारे हैं। प्रश्न कीयो है जाय स्वामी दियो समझाय, रामजी मिले सुकरि बैन उर धारे हैं। . रघवा मिटी है अाँट पोथा द्विज दीन्हाँ बाँटि, मन वच कर्म स्वामी दादूजी तुम्हारे हैं ॥१०२० पृ० १६१ पद्यांक ३६३ के बादअरेल देह त्यागती वेर कही सब साधि कां । धरि प्राज्यो मम देह श्रीगुरु पादुकां । चलो बीच जगत हट्ट पट परे करे। परहां राघौ रथ सुरीति देख चर पग परे ॥१०२३ दोहा जगजीवन धनि राघव, रीत भलि अति कीन । देह कारवज कारण मिले, आप भये ब्रह्मलीन ॥१ पृ० १६३ पद्यांक ४०२ के बाद - चतुरदासजी का वर्णन : मूल छप्पय मरदनियाँ की छाप शीश शिष्य चतुरदास दयाल को॥ ब्राह्मन कुल उत्पत्ति जगत गति निपट निवारी । गगन मगन गलतान भजन रस में मति धारी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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