Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 330
________________ परिशिष्ट १ . [ २५५ 'प्रायस जो ठगो' ॥१०॥ बाबा जे ठगिया ते तो मन बैठि गया, अरु ठगिया जम कालम् । हम तो जोगी निरन्तर रहिया, तजिया माया-जालम् ॥१० 'प्रायस जी फेरी द्यौ' ॥११॥ बाबा जे फेरे तो मन को फेरे, दस दरवाजा घेरे। अरध उरध बीच ताली लावे, तो अठ-सिद्ध नो-निधि मेरे ॥११ 'प्रायस जी धन्धै लागौ ॥१२॥ बाबा गोरख धन्धे अहनिस इक मनि, जोग जुगति सों जागै। काल व्याल का मैं हम देख्या, नाथ निरंजन लागे ॥१२ 'प्रायस जी देखो' ॥१३॥ बाबा इहां भी दीठा उहां भी दीठा, दीठा सकल संसारम् । उलट पलटि निज तत चीन्हिवा, मन सू करिवा विचारम् ।।१३ जैसा करै सु पावै तैसा, रोष न काई करणां । सिद्ध शब्द को बूझे नांहीं, तो विण ही खूटी मरणां ॥१४ इंदव जाय जहां सब दुष्ट ही देखत, खेचर तें सबदी ह करी है। छंद आय कही सिष सों तब सेवक, होय सु बाहरि जाय धरी है । कोप भये गुरु पत्तर लेकर, पट्टण पट्टण मार करी है। सन्त अनादर को फल देखहु, दण्ड दिये परजा सु डरी है ॥७३५ पृष्ठ १४२ पद्यांक २८८ के बाद( यह पद्य पृष्ठ २५ पद्यांक ४७ में आ गया है ) अथ बोध-दर्शन छप्पय भृगु मरीच वाशिष्ठ पुल्हस्त पुल्ह कृतु अंगिरा। अगस्त चिवन सौनक्क सहंस अग्रासी सगरा। गौतम गृग सौभ्री करिचक सृङ्गी जु समिक गुरु । वुगदालमि जमदग्न जवल पर्वत पारासुर । विश्वामित्र मांडीफ कन्व वामदेव सुक व्यास पखि । दुर्वासा अत्रेय अस्त देवल राघव ऐते ब्रह्म-रिष ॥७४२ छंद इति बोधदर्शन समाप्त। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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