Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 322
________________ चतुरदास कृत टीका सहित | २४७ लई मांनि करी जांनि धरे आंनि भक्त सब, नृगुन सगुन षट-द्रसन बिसाल है। साखि छपै मनहर इंदव अरेल चौपे, निसांनी सवइया छंद जांनियो हंसाल है ।।६३१ प्रथमहि कीन्ही भक्तमाल सु निरांनदास, परचा सरूप संत नाम गांम गाइया। सोई दैखि सुनि राघोदास आप कृत मधि, - मेल्हिया बिबेक करि साधन सुनाइया। नृगुन भगत और प्रांनि यां बसेख यह, उनहूं का नांव गांव गुन समझाइया। प्रियादास टीका कीन्ही मनहर छंद करि, ताहि देखि चत्रदास इंदव बनाइया ॥६३२ स्वामी दादू इष्टदेव जाको सर्ब जानें भेव, सुंदर बूसर सेव जगत विख्यात है। तिनके निरांनदास भजन हुलास प्यास, उनहूं के रामदास पंडित साख्यात है। जिनके जु दयारांम कथा कीरतन नाम, लेत भये सुखरांम और नहीं बात है। त्रिष्णा अरु लोभ त्याग लयौ है सतोष भाग, असे जू संतोष गुर चत्रदास तात है ॥६३३ संप्रदाइ पंथ पाइ षट-द्रष्ण जक्त प्राइ, भजत गोबिंद राइ मन बच काइये। जिन मांहै काढि खोरि निंदत है मुख मोरि, दूषन लगाइ कोरि साचहि झुठाइये। साध कौं असाध करै अनदेखी बात धरै, रांम सून डर लरै जोर ते धिकाइये। यसे कलिजुगी प्रांनी प्राइ कहै कटुबांनी, . पाप की निसांनी प्रभु ताहि न मिलाइये ॥६३४ इंदव बुद्धि नहीं उर नां अनभै धुर, पासि न थे गुर दूषन टारें। छंद प्राइ गई मनि औरन मैं सुनि, संतन कौं भनि होइ उधार। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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