Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 309
________________ २३४ ] राघवदास कृत भक्तमाल बाईजी स भाईजी सरस सिर हाथ धरयौ, संत हूं महंतन सबन मन भायौ है। राघो कहै राम धनि पाई बड़ी ठौर वनि, धनी मसकीन' धनि माता जिन जायौ है ॥५०२ स्वामी ग्रोब महंत के, टीके केवलदास बर ॥ प्रेम भक्ति को पुंज, रचे पद साखी नीके। करुणां बिरह बिवोग, सुनत उद्धारक जी के। जो चलि आवै साध, बहुत तिन प्रादर करई। भजन भाव सत सील, देखि सब को मन टरई। राघो महिमां करत कै, सुख पावै नारी रु नर । स्वामी ग्रोब महंत के, टीकै केवलदास बर ॥५०३ मनहर छद सूबौ अजमेरि ताकौ भज्यो ही दिवांन प्रायौ, केवल बिराज बड़ी सररिण निराने हैं। आये असवार तार्को पकरि ले चाले जब, केवल हं पाये डरपांने दुखदांने हैं। जिमी मै गडांऊं थोथे तुकन मराऊ यह, वंद वाजे राखै मेरौ काफरन जाने हैं। दई काढि खंजर की पेट मांझ भृति वाके, परचौ प्रतक्ष भयो जगत बखांने हैं ॥५०४ इम रज्जब अज्जब महंत कै, भले पछोपै साध सब ॥ दीरघ १गोबिंददास, पाटि अब रांमट राज। २खेम सरस सरवाड़ि, तास सिष तहां बिराजै । ३हरीदास ४छीतर ५जगन, ६दामोदर ७कैसौ । पकल्याण दो बनवारि, राम रत-मत गहि केसौ। जन राघो मंगल राति दिन, दीसत दै देकार अब । इम रज्जब अज्जब महंतक, भलै पछोपैं साध सब ॥५०५ १. समकीन। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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