Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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२३० ]
छपै
राघवदास कृत भक्तमाल
१
गोबिन्ददेवजु सेव करें गुर है हरिदास चले सुधरी है ।, चावर दूध जच्यौ हरि जावत होत खुसी मति जांन हरी है || ६२७ प्रति सुन गुर मात नहीं तन, कैत तिया सन कौंन करीजै । जोइ कही घर संपति मालहि भेट करो इक बेठ न लीजै । होत खुसी सुनि भक्ति सु तौ तनि, मानत मो मनि पेख ' हि भीजै । कांन परी यह बात फिरे, हरिदास लख्यौ पन प्रावन २ ।। ६२८ होत उत्साह रह्यौ तन दाह सु, प्राय स पाय चले बन आये । मांनि रहे सुख सब्द कहे मुख, जाइ वहां बृज लोग छुड़ाये । चोरियधांम करी न कुभावहि, बुद्धि प्रिया पिय मै द्रिग लाये । है बड़भाग हरी अनुराग, पिता रसिकी जन माधव पाये ।। ६२६ अन्त पिछांनि नहीं सुधि जांनिस, आगर सूं सब ले बन जावै । त भये अधि होइ गई सुधि, कर चले कत जो तुम भावं ।
फेहु ह्वां नहि लाइक, बारत बास प्रिया प्रिय ग्राव ।
मो
झां मन होइ स जाइ तहां चलि, भावइ सो वह जागि समावै ॥ ६३०
मूल
बच्यौ सुबरना श्रगनिमुख, यौं रांम जपत ज्वाला टरी ॥ चंद्रहास की बेर न्याव हरिनी कौ विष देते बिषिया दई, बहुरि नृप टोकौ कुंटम सहत इक भूप, भवांनी पूजन भरत चक्रवत देखि, पाय गहि पलौ जन राघो राख्यौ भरथरी, भई सपत सूली हरी । बच्यौ सुबरनां श्रग्निमुख, यौं रांम जपत ज्वाला टरी ॥४८६ सत त्रेता द्वापर जुग्ग सूं, अब कलू कीरतन सार है ॥ गोपी प्यंड प्रजन्न पतिन, परिहार सुनि भागी । सुर नर असुर सु नाग, पुरष पतिनी हरि रागी । धर्म तेज तिपुरा बच्यौ, हरि सुख मृग्यौ काल कौ । बृध्यौ बंस बिरोधतहि, धन परजन धनपाल कौ ।
१. पेमहि ।
टिप्पणी- सेत ।
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कीन्हौं ।
दीन्हौं ।
मारयौ ।
पसारयौ ।
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