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राघवदास कृत भक्तमाल
मनहर
बिसुद्ध बुद्ध अबिरुद्ध, सुद्ध सर्बग्य उजागर ।
प्रमानंद परकास, नास निगड़ांध महाधर । बरन बूंद साखी सलिल, पद सरिता सागर' हरी। दादू जन दिनकर दुती, बिमल बृष्टि बांरणी करी ॥३६०
टोका ___ सागर मैं टापू तामैं तीन सिध ध्यान करै,
येक कू जु अाग्या भई जीव निसतारिये । नभबांनी भये ऐक सिध सो गुफ्त भये,
पीछे दोइ रहे उन प्रभु उर धारिये । धरा गुजरात तहां नदी बही जात येक,
ब्राह्मण सु न्हात सौंज पूजा को संवारिये । पुत्र की चाहि अति बैठौ सारवंती जिति,
पींजरा आयौ तिरत याकौं तौ संभारिये ॥५४७ देख्यौ खोलि ताहि खेल लरिका सो मांहि उन,
लयो गरिबांहि यह प्रभु मोहि दयो है। भई नभबांनी केइ उधरेंगे प्रानी या सौं,
सति सुनि जांनी मन अचंभा जु भयो है । लोदीरांम नाम नागर ब्राह्मण जाम,
लछि जाकै धाम बहु लैकै घर गयो है। बांटत बधाई पुत्र हौ ज नहीं भाई मेरे,
__माया यौं लुटाई धूरि जांनि के रुपैयो है ॥५४८ बड़े भये दाजू बालकनि मांहि खेलै,
बृद्ध रूप धारि हरि पीसा प्रांनि माग्यौ है । देखि बिकराल रूप बाल सब भाजि गये,
रहे येक दादूजु माथै भाग जाग्यौ है। कहै मैं जुल्यांऊ पीसा ठाढ़े रहौ इहां ईसा,
बेगि जाइ देख्यौ खीसा पीसा हाथ लाग्यौ है । दौरि के सताब आयौ प्रभु लेहु पोसा ल्यायौ,
कीजिये जु मन भायो मेरौ डर भाग्यौ है ।।५४६
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-DANEEDHAALI
१. सागुर।
२. संति ।
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