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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १८५ अजमेरि सांभरी सहेत कछु द्रब्य लेहु,
___साहिब के नाइ तुम देहु अर खावई । राघो कहे गैब के तुरंग दिखलाइ दीये,
झांगीर पाव लोये ग्रोब मन भावई ॥३६७ स्याह जहांगीर जब चले अजमेर पीर,
सुने हैं गरीबदास द्रसंन कौं प्रायो है। कूवा अरु बावरी तलाब सब सूके परे,
ग्रीषम की रुति सब कटक तिसायौ है। गायो है मलार मेघ बीनां झुनकार करि,
सांवन की घटा जैसैं घन बरखायो है। दोऊ कर जोड़ि लीये सांभरि अजमेरि दीये,
स्वामी न कबूल कीये स्याम न भायो है ॥३६८ चेतन चिराक बंदा दादूजी दयाल नंदा,
प्रगट प्रचंड देग तेग दोऊ चढतौ। तेजसी त्रिकाल-नंसि' प्रचाधारी गुर प्रसि,
नांवको लिहारी भारी राम राम रटतो। सोलहू संतोष ध्यांन ग्यांनवांन भागवान,
क्षमा दया ध्रम जान गुरबाणी पढ़तौ । रघवा दैदीपमान ब्रह्म मैं समाइ प्रांन,
लोक परलोक जस रह्यौ बोल बढ़तौ ॥३६६
अन्यत
मनहर
भूपनि मैं महा भूप रूप तौ अनूप जाकौ,
चतुरन मै चतुर सुतौ गुनीयन मैं गुनी है। बुधि को बाख्यांन ज्ञान जांनिये बासिष्ट जैसौ,
संक्र सौ ध्यान अटल सेस धुंनि सुनी है । झक्ति तो नारदा सी, सारदा सौ शबद जाको,
जोग जुगति गोरख सौ मुनियनि मैं मुनी है। गांऊ तो गरीबदास और को न करौं पास, . कहत नरस्यंघ असो दूसरौ न दुनों है ॥३७०
१.
सि ।
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