Book Title: Bhaktmal
Author(s): Raghavdas, Chaturdas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

Previous | Next

Page 272
________________ बतुरदास कृत टीका सहित छ मनहर छंद छपै मनहर छँद दिलीपति प्राये तब काजी समझाये सब, १. मौंच । पंडित नवाये और संसै स्याह भांनी है ॥ ४१४ जग्गाजी कौ बरनन दादू दीनदयाल कै, जगो जोति जगदीस को ॥ भक्ति-भाव परपक्क, साध गुर सेवा बरती । बधायो जानि सु धरती । जु लई परस परक्षा | भक्षा भये रसोई खांन, सोरनी कीन्ही राघो धाये दक्षन दिस, भक्ति बधाई ईस की । दादू दीनदयाल के, जगो जोति जगदीस की ॥४१५ दादूजी के पंथ महि जगा जोति लागि रही, जग सूं उदास जगो कहूं न लुभायो है । परसरांम संप्रदाई खेचरी चलाई बहु, सोरनी जीमाई तऊ खात न घायौ है । कहै मुख सेती सर्ब दूंगी बस्त जेती यह, होइ मन तेती कछु धापौ नहीं प्रायो है । httडोल कौ बधाव गुर-सेवा माहै" चाव भलौ, Jain Educationa International सहर सीकरी श्री र, गये सलेनबाद, राघौ पायौ डाव करतार यूं रभायौ है ॥ ४१६ जगनाथदासजी को बर्नन दादू कौ सिष जगन्नाथ, जुयति जतन जग में रह्यौ ॥ प्रेमां भक्ति बसेख ग्यांन, गुन बुद्धि समभि प्रति । सास्त्रग्य अरु तज्ञ, सील सतवादी मति गति । गुण-गंज नांमौ कीयौ काबिता सर्ब कीता मधि । गीता बसिष्टसार ग्रंथ, बहु प्रवर साध सिधि । चित्रगुपत कुल मैं प्रगट, जो देख्यो सोई कह्यौ । दादू को सिष जगन्नाथ, जुगति जतन जग में रह्यौ ॥४१७ दादूजी को मिले हैं कायस्थ कुल निकसि कैं, जगमग जोति जगनाथ देखी गुर की। [१९७ २. मैं है । For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364