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चतुरदास कृत टीका सहित
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सूधो कर कीयो जब प्रभु जांनि लीयौ तत्र,
नग्र मैं तू जाहु अब याके पांन लाइये | सुनित सिताब गये तंबोली तें पांन लये,
प्रांनि कैं हजूरि भये हाथ ले चबाइये | रीभि मैं त्रिलोकनाथ सीस पैं जु धरचौ हाथ,
ऊमंगि चूनां पान काथ दादू कौं खवाइये | अंतरध्यांन भये हरि दादूजू गये घरि,
मन मैं बिचारी फिरि ध्यांन लै धराइये ।। ५५० मिष्टबांनी करी तामैं गायो हरी प्रेम ते जु,
प्रगटे सांभरी दादू स्वांग नहीं धरचौ है । दिवाले पद गावै असुरन कूं न भावै,
कोउ आइ संता तासूं रोसहु न करचौ है । की दीन्ही थाप मनमैं न ल्यायो श्राप,
ताही समैं चढ़ी ताप भुजा दुखि मरचौ है । येक दिनां फिरि गाये पांच सात सुनि आये,
पकरि उठाये लै कैं भाखसी मैं जरयौ है ।। ५५१ दिवाले भाक्सी दोऊ जगां बैठे खुसि सब,
काजी रहे खसी कछु पार नहीं पायो है | सुनी सिकदार सब दुनो की पुकार प्रति,
दादू डारौ मारि हाथी मत्वारो झुकायो है | नीरै हू न जाइ पीछे पीछे धरै पाइ बैठो,
संघ गरराइ देखि दूरि तें नसायो है । छत मंडवाई कोऊ दादू के जु जाई देगी,
येक
सौं रुपैया भाई सौ बांचिकें सुनायो है ।। ५५२ साहूकार पनधारी प्रसन कौं गयो जब, दादू से कह्यौ दंड छीत बांचि दीजिये । पकरि ले जाई अंक छींत पलटाई कोऊ,
दादू के न जाई दंड ताकै पासि लीजिये । येक दिनां सात नौंते येकठे ही आये होते, बुलाबे कौं प्राये जेते चालि करि जजिये ।
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