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राघवदास कृत भक्तमाल सोत सिरै भभक्यौ ब्रह्म-वारणी कौ, ग्रंथ सिधांत अनेक करे हैं। राघौ कहै रत राति द्यौ राम सौं, संगति और घणे उधरे हैं ॥२८८
इति जोगी दरसरण
छपै
अथ जंगम दरसन यम जंगम दरसन गोपगुर, तिन संग्या वरनन करूं ॥
सदानंद खुस्याल, लिंग सिधपाल देवरूं । जल का तूंबा दूध कीया, यह जांनि भेवरू । सील मूल गंग लिंग, सील के भये कन्ह रे। मूलहु के देवरू लिंगावति लिंग चिन्ह रे।
गंगह के भाठी, स नखा नारी मठ बांध्यौ । ___गोदावरि बद्रिका, बोखी जोसी पाराध्यौ। लिगेसुर कामे पुरा, राघो सबकू उर धरूं । यम जंग। दरसन गोपिगुर, तिन संग्या बरनन करूं ॥२८९
इति जंगम दरसन
अथ समदाई बरनन छपै प्रेम मुक्ष कलिजुग बिर्ष, संत सकल यह जान है ।
ब्यास ज्यानकी-हरन, नृपति के श्रवन सुनायो । चढ्यो बीजल' खड़ग, उदधि के माहि चलायौ । लीला' मनहर होइ, हिरनाकुस काट्यौ ।
दूजे दसरथ भयो रांम, चलते उर फाट्यौ । बाम स्यांम सुनिमें बंधेता, छिन दीये प्रांन है। प्रेम मुक्ष कलिजुग बिषे, साध सकल यह जान है ॥२९०
टोका भक्तदास भूप नाम कुल सेष को इंदव प्रेम बड़ी कलि साखि कहै जन, वैह असाध सु भक्ति न भाव। बंद ब्राह्मनो के दुख पुत्र पठायत, कैसु दयो बिन जांनि घुमावै ॥४१८ १. बाज ले। २. लीला में नरहरि। ३. सेखर ।
भूप हुतौ इक राम ततप्पर, राम सुनै गुन है उर भाव । व्यास वडो दै ताहर नौ नृप, नाहिं कहै उन जाणि मु मावै ॥
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