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चतुरदास कृत टीका सहित
[ ९१ भूप उदास भयो अति सोचित, जात भयो सर बूड़ि मरौंगो। मो अपमान करचौ सुधरचौ वह, बात छिपै कत नांहिं टरौंगो। आप कहै हरि बूड़ि मरै मति, ग्रंथन और सु ताप हौंगो। द्वादस सर्ग सलोकहि द्वादस, मांहि धरां बिख्यात करौंगो ॥२३७ बैंगन के बन-मालिन गावत, पंचम सर्ग कथा बनमाली। लार फिरै जगनांथ झगो तन, चूंमत लागत प्रेम सु झाली । दौर फटें लखि बूझत है नृप, सेवक देखि बजावत ताली। श्री जगनाथ कहै सर्ग पंचम, चालि गयो बन गावत अाली ॥२३८ भूप कहाइ दयो सगरै यह, गीत-गुबिंद भली धर गावो। बांचत गावत है मधुरै सुर, प्राइ सुनै हरि है बहु चावो । येक मुगल्ल सुनी यह ठांनत, वाज चढ्यौ पढ़ि है प्रभु भावो । गीत-गुबींद हि गावत है सुर, स्यांम धरयौ पद आप सुहावो ॥२३६ काबि कथा बरनीस सुनी जिम, और सुनौं अधिकाइ महा है। म्हौर कनै मग मांहि मिले ठग, जात कहां तुम जात जहां है। जांनि गये पकराइ दई सब, चाहत लैं हम बात कहा है। दुष्ट कहै चतुराइ करी इन, ग्रांमहि मैं पकराइ लहां है ॥२४० मारि नखो इक यौं उठि बोलत, दूसर कै जिनि मारहु भाई। लेहि पिछांनि कहूं त करें किम, काटि करौ पग' झेरन खाई। भूपति अाइ गयो उन देखत, झेर उजासर मोद लखाई। काढ़ि लये तब पूछत कारन, भक्त कहै हरि यौंह कराई ॥२४१ संत भले बड़ भाग मिले मम, सेव करौं निति यौं सुख लीजै। लै सुखपाल बढ़ाइ चले पुर, भूप कहै कछु प्राइस कीजै । संतन सेव करौ नित मेवन, आवत जो जन आदर दीजै । स्वांग बनाइ र अावत बैठग, आप कहै बड़ भक्त लहीजै ॥२४२ भूप बुलाइ कहै तुम भागहि, आत बड़े जन सेव करीजै। मंदरि मै पधराइ रिझावत, होत सुभोग डरै बप छीजै।
आइस मांगत है दिन ही दिन, आप कहै इनकौं द्रिब दीजै । माल दयो बहु लार करे भृत, द्यौ पहुचाय सु-बैन भनीजै ।।२४३
१. फेर।
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