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चतुरदास कृत टीका सहित
दव
छंद
भजन प्रबल जल बिठल' - नाथ को जाकी बेला । प्रभु प्रसाद तन तेज, चरन चरचित नृप चेला | श्री बल्लभ - कुल मैं प्रेम-पुंज, नृबिलीक सो खंभीर । श्रीगोकलनाथ नाथ पै, दया करत श्रति गुन- गंभीर ॥२११
टीका
प्रांनि कही इक मोहि करौ सिष, भेट चढावन लाख न ल्यायो । कौ तब त इसौ कहु, जाहि बिनां तन जाइ छुटायो । बोल मनांहि कहूं हित, मैं न करों सिष और सुनायो । प्रेम कथा इत और न दूसर, बेंन प्रचार सुन्यौ दुख पायो || २६२ भंगिह कांन्ह भजै भगवान, नहीं उर प्रांत-स लालहि भावै । रैंनि सुनहि नाथ कही यह भीति हुई मम नांहि सुहावै । गोकल - नाथहि जाइ कहौ तुम्ह, बागन वोट दवाइ नखावै । प्रात भयो उरि सोच नयो किम, जाइ गयो सुनि मोहि मरावै ॥ २६३ बीत गये दिन तीन कहै निति, मोर कहा बस जाइ कहैगौ । द्वारहि पाहि जाइ चितावत, रोस करचौ सुनि पास जाइ कही किन बेग बुलावत बात कहौ यह डौल कंठ लगावत जाति बहावत, येक कह्यौ हरि को सु रहैगो ।। २६४
लहैगो ।
ढहैगो ।
मूल
छ कृष्णदास पैं करि कृपा, गिरधरन सीर दियो नांम मैं ||
श्री बल्लभ गुर पाइ, भयो हरि गुरण कौ श्राले । नौख चोज मधि काबि, नाथ सेवा निति पालै । सेवत बांरणीं सुजन, ज्ञांन गोपाल भाल भर । सर्बस बृज मैं गनत, अवर नांहीं जांनत बर । प्रभुदास बरज तेरौ रहै, मन सो स्यामां स्यांम मैं । यम कृष्णदास पै करि कृपा,
गिरधरन सीर दियो नाम मैं ॥२१२
टीका
इंदवदास जु कृष्ण करचौ रसरास सु, प्रेम धरयौं उह नाथ बरयौ है । छंद होत बजार जलेबि दिली, अरपी प्रभु आपहि भोज करचौ है ।
१. बिललनाथ । २. लेला ।
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३. करचौ ।
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