________________
चतुरदास कृत टीका सहित
[ १०१ नरसीजी को बरनन : [मूल] छौं गुर्जर घर नरसी प्रगट, नागर-कुल पावन करयौ।
सबै सुमारत मनिख, बिष्णु की भक्ति न मांन । उर्धपुंडर गलि माल, देखि ता बहुत हसांनें। आप भयो हरिभक्त, देस को दोष निवारयो । तन मन धन करि प्रेम, भक्त भगवत पर वारयौ। हुंडी सकरी सांवरै, बेटी-कै माहिरौ भरयौ।
गुर्जर धर नरसी प्रगट, नागर-कुल पावन करयौ ॥२१६ मनहर _मन बच क्रम करि नरसी सुम्रत हरि,
माहै पूजी प्राननाथ हरिजी नौं नांव रै। जन के बचन जगदीस बांचे बारंबार,
जात्रिन कौं दीन्हे दाम 'हूंडी' लैकै सांवरे । नृप नै कोयौ अठाव जन के न आई बाव,
. प्राप्यो हरि हार ततकार बलि जांव रै। राघो कहै रामजी दयाल नरसी सौं निति,
पूत्री नै माहिरै करतार बूठौ ठांव रे ॥२१७
छद
टोका
इंदव मात पिता मरि जात जुनांगढ़, आप र भ्रात तियास रहे हैं। छंद खेलत आइ कही जल पावहु, भाभि जरी कुट बैंन कहे हैं।
ल्याइ कुमाइ कहावत है जल, पी भरिकै स जबाब लहे हैं। ऊठि गये यह त्याग करौं तन, जाइ सिवालय चिन्ह गहे हैं ॥२८० सात भये दिन जात न बाहर, द्वार गहै तुछ सो सुधि लेवै। भूख र प्यास तजी र भजे सिव, रूप धरयौ जन दर्सन देवै । भांगि कहै कछू मांगि न जानत, जो तुम कौं पृय द्यौ मम तेवै। सोच परयौ यह आइ अरयौ तिय, कैत डरयौ निति मोहित सेवै ॥२८१ मैं-ज दयौ बिरकासुर कों बर, होत भयौ डर या परवारे । पालक है जग बालक नै यह, धौंस कहाइ न रांम पियारे। द्यौं र नहीं मम बँन नसावत, आप बहू बपु नारि न धारे। आत भये बृज रास दिखावत, भौत तिया मधि कांन्ह निहारे ॥२८२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org