________________
चतुरदास कृत टीका सहित
छपै
मूल
श्री रूप सनातन तज्ञ
दुहु, बिषै स्वाद कीयो बवन ॥
सूबौ
होई ।
जोई ।
श्राये 1
पूरब गौड़ बंगाल, तहां कौ बिभौ भूप परमांन, खजांनां प्रसु गज मिथा सब सुख मांनि, चालि बृन्दाबन प्रापति मैं संतोष कुंज, करवां मन संत तोष राघो रिदै, भक्ति करो श्रीरूप सनातन तज्ञ दुहु, बिषै स्वाद कीयो बवन ॥ २२० टोका
भाये ।
राधा-रवन ।
पांच तुकां निरबेद निरूपण, जांनि करयो मन मांहि डरे हैं । येक रही तुक मांझ निरंतर, लाख कबित्त प्ररत्थ धरे हैं । स्यांम प्रिया रस बात कही बड़, जीव सु नाथ छपैहि करे हैं । है अनुराग कहा बरनूं गति, जास दया करि प्रेम भरे हैं ।। ३११ भू बृज की बन की बड़िता जन, जांनत नांहि न देत दिखाई | रीति उपासन की सुपुरांनहु, के अनुसार सिंगार लखाई । इस पाइ सु स्यांम प्रभू करि, आइ लगे सु गुपेस्वर भाई । ग्रंथ करे तिनकी इक बात, सुनै पुलकै अखियां भर लाई ।। ३१२ रूप रहै नद- गांव सनातन, प्रांतहु खीर सु भोग लगांवै । आत प्रिया सुखदाइक बालक, रूप लियें सब सौंज धरावे । पाइस पावत नैंन घुलावत, पूछि जितावत सो पछितांवें । फेरि करौ जिन बात धरौं मन, चाल चलौ निज प्रांखि भरांवें ॥३१३ रूप गुनगुन गांन सुनें, अकुलांन तिते उन मूरछ आई । आप बड़े धरि धीर रहे न, सरीर सुधी इम बात दिखाई | श्री ऋणपूर गुसांई गये ढिग, स्वास लग्यौ तन के सुधि पाई । आगि हुये छिलका हुय जात, सप्रेम नयो यह कौंन सगाई || ३१४ गोबिंदचंद जु आइ निसा, सुपनें महि भेद सबैहि जनायो । मैं जु रहौं खिरका बिचि गोइक', सांझ र भोरहु दूध सिचायो ।
१. गारक ।
शिव कृष्ण चंतन को ।
Jain Educationa International
१०७
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org