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चतुरदास कृत टीका सहित
[ ३९ नमो पंड-सुत पंच, नमो परचंड पर-काजी। अति क्षत्री अति साध, कृष्ण जिन सूं प्रति राजी। नमो जुधिष्टर भूप रूप, धर्म सति के नाती।
नमो भीवभड़ पवन-सुत, पाप कर्मन की काती। नमो धनंजय धनुष धर, सत्रुन सर सज्या-धरण। नमो नकुल सहदेव कौं, जन राघों रोगन हरण ME रिष नारद नै निरभै कीये, प्राचीन बृह के पुत्र दस ॥टे०
कुवरन कौं कैलास, बताई निश्चल ठौरा। महादेव मन जीत रहै, संग सीतल-गौरां । बक्ता मगन महेस राज-रिष सनमुख श्रोता।
भक्ति-ग्यांन अतिहास, सार तत निरन होता। यौं चकेता प्रसिधि भये, जन राघो पीवत राम-रस । रिष नारद नै निरभै कीये, प्राचीन बृहै के पुत्र दस ॥१०० अहष्ट-चक्र इनके चले, रटि राघो षट चक्कवै ॥टे० प्रथम बेणि धर्म जेठा, दुतीय बलिवंत' बलि बहरी। धुंध मारबि सियार, जास रजधांनी गहरी। मांनधाता प्रति बढयौं, प्रसिधि महा भयो पूरवा। अजैपाल अब तप, धारि उर भलैं गुरदवार । उदै अस्त लौं राज घरि, करते न्याव हरि हक्कवै ।
अदृष्ट-चक्र इनके चले, रटि राघो षट चक्कवै ॥१०१ इंदव काक-भुसंड र मारकंडे मुनि, जागिबलक कृपा क्रम जीते। छौंद सेस संभु वुगदालिम लोमच, ध्यान समाधिहि मैं जुग बीते।
खडांग दिलीप प्रजौं अजपाल, रिषभदेव अरिहंत उदोते। राघो कहै चकवै षट ये दस, रांम परांगमुख ते गये रीते ॥१०२
समुदाई टीका इंद्र अगन्नि गये सत देखन, स्यौर दयो तन काटि र मासं । सुर्थ सुधन्वा सुदोष कियो दिज, संख लिखत्त भयो बपु नासं।
१ छलिवंत। २ गुरदेवा। ३ षोडस। ४ हस ध्रु पुत्र ।
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