Book Title: Bhagwati Sutra Part 02
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
(XII)
७३०
टिप्पण
(छट्ठा गमक : जघन्य और उत्कृष्ट) ७२५ दूसरा उद्देशक (सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) ७२५ दसवां आलापक : असुरकुमार-देव के रूप में (आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य) ७२६ उत्पन्न तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का उपपात(नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ७२६ -आदि
७३० सातवां आलापक : दूसरी नरक में संख्यात असुरकुमार-देव के रूप में पर्याप्त-असंज्ञीवर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी
-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय-जीवों का उपपात-आदि ७३० -मनुष्यों का उपपात-आदि
७२६ । (पहला गमक : औधिक और औधिक) ७३० (पहला गमक : औधिक और औधिक) ७२६ ग्यारहवां आलापक : असुरकुमार-देव के रूप में (दूसरा और तीसरा गमक : औधिक और
असंख्यात वर्ष की आयु वाले (पर्याप्त)जघन्य, औधिक और उत्कृष्ट) ७२६
-संज्ञी-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय (यौगलिकों) का टिप्पण
७२६ उपपात-आदि
___७३० (चौथे से छट्ठा गमक : जघन्य और
(पहला गमक : औघिक और औधिक) ७३० औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य
(दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) ७३१ और उत्कृष्ट) ७२७
७३१ टिप्पण
७२७
(तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट) ७३१ (सातवें से नवां गमक : उत्कृष्ट और ।
(चौथा गमक : जघन्य और औधिक) ७३२ औधिक, उत्कृष्ट और जघन्य, उत्कृष्ट,
(पांचवां गमक : जघन्य और जघन्य) ७३२ और उत्कृष्ट)
७२७
(छट्ठा गमक : जघन्य और उत्कृष्ट) ७३२ आठवां आलापक : तीसरी से छट्ठी नरक में
(सातवां गमक : उत्कृष्ट और औधिक) ७३२ संख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्त
(आठवां गमक : उत्कृष्ट और जघन्य) ७३२ -संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ७२८
(नवां गमक : उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ७३३ नवां आलापक : सातवीं नरक में संख्यात
बारहवां आलापक : असुरकुमार-देव के रूप में वर्ष की आयु वाले पर्याप्त-संज्ञी-मनुष्यों
संख्यात वर्ष की आयुष्य वाले संज्ञीका उपपात-आदि
-पंचेन्द्रिय-तिर्यग्योनिक-जीवों का उपपात(पहला गमक : औधिक और औधिक) ७२८
-आदि (दूसरा गमक : औधिक और जघन्य) ७२८ टिप्पण
तेरहवां आलापक : असुरकुमार-देव के रूप में
७२८ (तीसरा गमक : औघिक और उत्कृष्ट) ७२८
संज्ञी-मनुष्यों का उपपात-आदि ७३३ टिप्पण
७२९
असुरकुमार-देव के रूप में पर्याप्त-असंज्ञी(चौथा, पांचवां, छट्ठा गमक : जघन्य
-तिर्यंच-पंचेन्द्रिय का उपपात-आदि ७३४ और औधिक, जघन्य और जघन्य, जघन्य (पहला, दूसरा और तीसरा गमक : औधिक और उत्कृष्ट)
७२९
और औधिक, औधिक और जघन्य, टिप्पण
७२९ __ औधिक और उत्कृष्ट
७३४ (सातवां, आठवां, नवां गमक : उत्कृष्ट (चौथा, पांचवां और छठा गमक : जघन्य और औधिक, उत्कृष्ट और जघन्य,
और औधिक, जघन्य और जघन्य, उत्कृष्ट और उत्कृष्ट) ७२९ जघन्य और उत्कृष्ट)
७३४
७२८