Book Title: Bhagwati Sutra Part 01
Author(s): Kanakprabhashreeji, Mahendrakumar Muni, Dhananjaykumar Muni
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
(XV) इस समग्र योजना के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए युवाचार्य महाप्रज्ञ (आचार्यश्री महाप्रज्ञ) ने लिखा है"आगम-संपादन की प्रेरणा |
विक्रम संवत् २०११ का वर्ष और चैत्र मास। आचार्यश्री तुलसी महाराष्ट्र की यात्रा कर रहे थे। पुना से नारायणगांव की ओर जाते-जाते मध्यावधि में एक दिन का प्रवास मंचर (नामक गांव) में हुआ। आचार्यश्री एक जैन परिवार के भवन में ठहरे थे। वहां मासिक पत्रों की फाइलें पड़ी थीं। गृहस्वामी की अनुमति ले, हम लोग उन्हें पढ़ रहे थे। सांझ की बेला, लगभग छह बजे होंगे। मैं एक पत्र के किसी अंश का निवेदन करने के लिए आचार्यश्री के पास गया। आचार्यश्री पत्रों को देख रहे थे। जैसे ही मैं पहुंचा, आचार्यश्री ने धर्मदूत के सद्यष्क अंक की ओर संकेत करते हुए पूछा-'यह देखा कि नहीं?' मैंने उत्तर में निवेदन किया-'नहीं, अभी नहीं देखा।' आचार्यश्री बहुत गंभीर हो गए। एक क्षण रुक कर बोले-'इसमें बौद्ध-पिटकों के सम्पादन की बहुत बड़ी योजना है। बौद्धों ने इस दिशा में पहले ही बहुत कार्य किया है और अब भी बहुत कर रहे हैं। जैन-आगमों का संपादन वैज्ञानिक पद्धति से अभी नहीं हुआ है और इस ओर अभी ध्यान भी नहीं दिया जा रहा है।' आचार्यश्री की वाणी में अन्तर्-वेदना टपक रही थी, पर उसे पकड़ने में समय की अपेक्षा थी। "आगम-संपादन का संकल्प
"रात्रिकालीन प्रार्थना के पश्चात् आचार्यश्री ने साधुओं को आमंत्रित किया। वे आए और वंदना कर पंक्तिबद्ध बैठ गए। आचार्यश्री ने सायं-कालीन चर्चा का स्पर्श करते हुए कहा-'जैन-आगमों का कायाकल्प किया जाए, ऐसा संकल्प उठा है। उसकी पूर्ति के लिए कार्य करना होगा, पूर्ण श्रम करना होगा। बोलो, कौन तैयार हैं?'
"सारे हृदय एक साथ बोल उठे–'सब तैयार हैं।' ___ "आचार्यश्री ने कहा-'महान् कार्य के लिए महान् साधना चाहिए। कल ही पूर्व तैयारी में लग जाओ, अपनी-अपनी रुचि का विषय चुनो और उसमें गति करो।'
"मंचर से विहार कर आचार्यश्री संगमनेर पहुंचे। पहले दिन वैयक्तिक बातचीत होती रही। दूसरे दिन साधु-साध्वियों की परिषद् बुलाई गई। आचार्यश्री ने परिषद् के सम्मुख आगम-संपादन के संकल्प की चर्चा की। सारी परिषद् प्रफुल्ल हो उठी। आचार्यश्री ने पूछा-'क्या इस संकल्प को अब निर्णय का रूप देना चाहिए?'
___ “समलय से प्रार्थना का स्वर निकला–'अवश्य, अवश्य ।' आचार्यश्री औरंगाबाद पधारे। सुराणा-भवन, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (वि. सं. २०११), महावीर-जयन्ती का १. उस समय विक्रम संवत् का प्रारम्भ हमारे किया जाता है। तदनुसार यह वि.सं.
धर्म-संघ में श्रावण कृष्णा प्रतिपदा से २०१२ है। होता था। अब चैत्र शुक्ला प्रतिपदा से