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भगवान पार्श्वनाथ |
बतलाया है और वामनका उल्लेख वेदों में है । इस दृष्टिसे भगवान ऋषभदेवका अस्तित्व वेदोंके पहलेका सिद्ध होता है । इन्हीं ऋषभदेव द्वारा इस युग में पहले २ जैनधर्मका प्रचार हुआ था | अतएव जैनधर्मका प्रारम्भ भारतके एक गहरे इतिहासातीत कालमें होता है। और इस अपेक्षा दक्षिण भारतका परिचय भी जैन शास्त्रों में तबही से कराया गया है ।
भगवान् नेमिनाथजीके तीर्थमें हुये कामदेव नागकुमारकी कथा में भी हमको दक्षिण भारतका पता चलता है । यह उल्लेख भगवान् पार्श्वनाथ से भी पहले का है । वहां कहा गया है कि पांडुदेश में दक्षिणमथुरा के राजा मेघवाहन रानी जयलक्ष्मीकी पुत्री श्रीमतीने प्रतिज्ञा की है कि जो कोई मुझे नृत्य करने में मृदंग बजाकर प्रसन्न करेगा, वही मेरा पति होगा । श्रीमतीकी प्रतिज्ञा सुनकर नागकुमारने दक्षिणमथुराको प्रस्थान किया था। मथुरा में पहुंचकर नृत्य समय में श्रीमतीको मृदंग बजाकर प्रसन्न किया और अन्तमें उसके साथ विवाह करके वे सुखसे वहीं रहने लगे थे । ' यहांसे नागकुमार समुद्रके मध्य अवस्थित तोपावलि द्वीप में गए थे और वहांसे कांचीपुर नगर में पहुंचकर वहांके राजा श्रीवर्माकी कन्या से पाणिग्रहण किया था । कांचीपुरसे कलिंगदेशके दंतपुर नगर में पहुंचे और फिर वे ऊड़ देशको गए थे। इस तरह वह दक्षिणभारतके देशों में परिचित रीतिसे विचर रहे थे, यद्यपि वे स्वयं चम्पानगर के निवासी थे ।
इसी प्रकार 'चारुदत्त' की कथासे भी उस समय के भारत के
१ - पुण्याश्रव कथाकोष पृ० १७५ । २ - पूर्व पृ० १७७ ।