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तत्कालीन धार्मिक परिस्थिति ।
[ ८५ कपिलके अनुयायी थे | कपिलको आसुरी अपना गुरु मानते थे और उनसे ही 'षष्टि-तंत्र' नामक मान्य सांख्य ग्रन्थ रचा था । (देखो आवश्यक बृ० नियुक्ति गा० ३९० - ४३९) किंतु 'आदिपुराणनी' में
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कपिलको मारीचिका शिष्य नहीं लिखा है। वहां 'त्रिदंडी मार्ग ' निकालने का उल्लेख है ( पृ० १३७ ) । जो हो, इससे यह प्रकट है कि आसुरीका सम्बन्ध अवश्य ही सांख्यदर्शन से था किन्तु हमारा अभिप्राय यहांपर इन वैदिक ऋषियोंके सिद्धांतोंपर विवेचना करनेका नहीं है और न हमारे पास इतना स्थान ही है कि हम उनकी विवेचना यहां कर सकें । यहां मात्र वैदिक धर्मके विकाश क्रमपर प्रकाश डालना इष्ट है, जिससे भगवान पार्श्वनाथके समयके धार्मिक वातावरणका स्पष्ट रख-ढंग मालूम हो सके। वैसे जैनशास्त्रोंमें इन वैदिक मान्यताओंकी स्पष्ट आलोचना मौजूद ही है । अस्तु ! हमें अपने उद्देश्यानुसार केवल इन वैदिक ऋषियोंके सैद्धांतिक इतिहास क्रमपर एक सामान्य दृष्टि डाल लेना ही उचित है ।
आसुरीका अस्तित्व संभवतः भगवान नेमिनाथके तीर्थमें रहा होगा और इन्हीं के धर्मोपदेशसे यह प्रभावित हुआ होगा, यही कारण है कि वह हमारे लिये आत्मा या परमात्माको प्राप्त करना अन्य कार्योंसे सुगम समझता है (God or soul is nearer to us thana anything else: dearer than a son, dearer than wealth, dearer than all the rest) eit पुत्र, सम्पत्ति एवं अन्य सब वस्तुओंसे प्रिय बतलाता है । जहां पहले पुत्रकी प्रधानता रही थी, वहां वह अब आत्माको ला उपस्थित करता है ।
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पर साथ ही वह अन्य कर्तव्योंको पालन करना भी जरूरी खयाल