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.२३६] .. भगवान पार्श्वनाथ ।
जनसाधारणमें भी शायद इसी अपेक्षा पद्म (कमल) पुष्पोंसे पूर्ण नदी और सरोवरोंको 'पद्मावती' और 'पद्मवन' नामसे परिचित करनेकी मर्यादा प्रचलित है।' मिश्रदेश, जहां कि भारतीयताका प्राचीन संबंध रहा है जैसे कि हम अगाडी देखेंगे, वहांकी नील ( Nile ) नदीको लोग इसी अपेक्षा 'पद्मावती' भी कहते हैं और उसीकी दल दलमें एक 'पद्मवन' भी है । तथापि 'पद्म' देवीकी भी वहां मान्यता है। धर्मका प्रकाश करनेके लिये-निनशासनकी विजय वैनयंती फैलानेके लिये पद्मावतीदेवी बहु प्रसिद्ध हैं । एक आचार्यके निम्न शब्द इसके साक्षी हैं:
संसाराब्धौनिमग्नां प्रगुणगुणयुतां जीवराशिं च याहि । श्रीमजैनेन्द्रं धर्म प्रकट्यविमलं देवि पद्मावती त्वं ॥ २३ ॥ तारामानविमईनी भगवती देवी च पद्मावती। ताता सर्वगता त्वमेव नियतं मायेति तुभ्यं नमः ॥ ५ ॥
सचमुच पद्मावतीदेवी धर्मानुगगकी उमंगसे भरी हुई हैं। जिसने भी जब जिनधर्मकी प्रभावना करनेके भाव प्रगट किये वहां यह देवी उसकी सहायक हुई हैं ! आचार्यवर्य श्री अकलंकदेवनी जिस समय राजा हिमशीतलके दरबार में दक्षिण भारतके कांचीपुर (कन्नीवरम् ) नामक नगरमें तारादेवीके आश्रित बौद्धगुरुसे बाद करते २ विलख उठे थे, उस समय इन्हीं देवीने प्रगट होकर उनकी सहायता की थी। ऐसे ही पात्रकेशरी आचार्यको भी यही देवी सहायक हुई थीं। एक जैन कवि इनके दिव्यरूपकी . १. ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० ५९ । २. पूर्व पुस्तक पृ. ६४ । ३. पूर्व पुस्तक पृ० ५९ । ४. बृ० पद्मावतीस्तोत्र १० ३१ । ५. अकलंक चरित्र देखो । ६. आराधना कथाकोष भाग १ पृ० ५।