Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 168
________________ नागवंशजों का परिचय ! [ १६३ हुआ । इसे लाल मुखवाला बिद्याधर लिखा है । इसे विद्याधरोंने हराया था, सो यह वानरद्वीप छोड़ पाताल - लंकामें आया था । राक्षसवंशी भी वहीं पहुंचे। निर्धात लंकाका राजा हुआ । बहुत दिन पाताल - लंका में रहते किहुकंधका जी ऊब उठा । उसने दक्षिण समुद्र तटपर करत वनके पहाड़पर किहुकंधपुर नगर वसाया । कर्णपर्वतपर इसके जमाईने वर्णकुण्डल नगर वसाया । पाताललंकाके स्वामी सुकेशके तीन पुत्र थे माली, सुमाली और माल्यवान | निर्घात् कुटुम्बी दैत्य कहलाते थे, सो इनसे उक्त तीन पुत्रोंने लंका वापस जीत ली । यज्ञपुरके विश्व कौशिकी के पुत्र वैश्रवणको वहां का राजा बनाया । पाताललंका में सुमालीका रत्नश्रवा रहा । इसने पुष्पकवन में विद्या साधी । वहां केसकी नामक राजपुत्री इसकी सेवामें रही। विद्या सिद्ध होनेपर इसने वहीं पुष्पांतक नगर बसाया । इन्हीं यहां रावण का जन्म हुआ । बालपने में रावणने उस हारको उठा लिया था जिसकी रक्षा एक हजार नागकुमार करते थे । उपरांत इसने भीम नामक वनमें एक स्वयंप्रभ नामक नगर बसाया था । रावणका विवाह विजयार्धपर्वतकी दक्षिण श्रेणीके नगर असुसंगतिके राजा मयकी पुत्री मंदोदरीसे हुआ था । राजा मय विद्या: घर ही था, परंतु दैत्य कहलाता था । लंकाके राजा वैश्रवणके वंशज यक्ष कहलाते थे । वैश्रवण और रावणमें युद्ध हुआ था, जिसमें वैश्रवणकी पराजय हुई थी । लोग उसे रणभूमिसे उठाकर यक्षपुर लेगए थे । वहां उसने दिगम्बरी दीक्षा धारण कर ली थी। #; * लाल मुखत्राले 'रेड इन्डियन्स' आज उत्तरीय अमेरिकामें मिलते हैं । स है वानरवंशी राजाओं का राज यहीं रहा हो ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208