Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 202
________________ नागवंशजों का परिचय | 1 देव मस्सगटै [ १९७ अर्जुनवृक्षपरका पांच फणवाला नागपति 'अनि' (Azii) जातिके राजाका द्योतक प्रतीत होता है । इसीका अप्रभ्रंशरूप 'अहि' है, जो नागका पर्यायवाची शब्द है । अगाड़ी क्षीरवनका जो उल्लेख है वह क्षीरसागर अर्थात् कैस्पियन समुद्र के तटवर्ती भूमिका द्योतक है | कैस्पियन समुद्रको पहले 'शिवनका समुद्र' कहते थे, जो क्षीरवनसे सदृशता रखता है। यहांका मर्कट (Massagatae) जातिका अधिपति होना चाहिये; क्योंकि यह जाति कैस्पियन समुद्र के किनारे पूर्वकी ओर बसती थी। तथापि मर्कट और मस्सगटे नाम में सदृशता भी है। साथ ही यह भी दृष्टव्य है कि प्रद्युम्न पाताल लोकमें चल रहा है और कालगुफासे अगाड़ी उसका सात प्रदेशोंको लांघकर भारत पहुंचना लिखा है । अतएव यह सात प्रदेश पातालके सात भागों का ही द्योतक है । इसलिये यहांकी बसनेवाली उक्त जातियोंके लोग ही उसे मिले होंगे। इनको देव योनिका मानना उचित नहीं है, यह पुराणकथन स्पष्ट है । अस्तु, मर्कटसे मिलकर अगाड़ी प्रद्युम्न कंदबकमुखी बावड़ी में पहुंचे थे वहां का देव नाग शायद कापी जातिक हो । कापोतसर (Lake Uramiah ) * संभवतः कंदवक बावड़ी हो । यह कापी लोग बड़े बलवान थे। इनमें सत्तर वर्ष से अधिक वयके वृद्धों को जंगल में छोड़कर भूखों मारने के नियमका उल्लेख स्ट्रेबो करता है ।" जैनशास्त्रों में मनुष्यके लिये ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानष्टस्थ आश्रमोंसे गुजरकर सन्यास आश्रम में पहुंचना आवश्यक बतलाया है । १ - पूर्व ० पृ० ३७ । २ - पूर्व० पृ० २३८ । ३- पूर्व० भाग १ पृ० ४६१ । ४पूर्व० भाग २ पृ० २४५ । १ - इन्डि० हिस्टा • कारटल भांग २ पृ० ३३-३४ ।

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