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भगवान पार्श्वनाथ ।
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और श्रमण धर्मके नामसे जैनधर्म भी
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पृ० ८३ ) इसलिये तातार लोगों का है । तिसपर ईरान और अरब तो तीर्थ रूपमें आज भी लोगों के मुंह से सुनाई पड़ते हैं । श्रवणबेलगोल के श्री पंडिताचार्य महाराजका कहना था कि दक्षिण भारतके जैनी मूलमें अरबसे आकर वहां बसे थे । करीब २५०० वर्ष पूर्व वहां के राजाने उनके साथ घोर अत्याचार किया था और इसी कारण वे भारतको चले आये थे । (देखो ऐशियाटिक रिसचेंज भाग ९ ४० २८४ ) किन्तु पंडिताचार्य जीने इस राजाका नाम पार्श्वभट्टारक बतलाया एवं उसी द्वारा इस्लाम धर्मकी उत्पत्ति लिखी है वह ठीक नहीं है। 'ज्ञानानंद श्रावकाचार भी मक्का मस्करी द्वारा इस्लाम धर्मकी उत्पत्ति लिखी है, वह भी इतिहास वाधित है । किन्तु इन उल्लेखोंसे यह स्पष्ट है कि एक समय अरब में अवश्य ही जैनधर्म व्यापी होरहा था । इस तरह ईरान, अरब और अफगानिस्तान में भी जैनधर्मका अस्तित्व था;' बल्कि दधिमुख
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परिचित है । ( कल्पसूत्र मूलमें जैनी होना भी संभव
में चारणमुनियोंका उपसर्ग निवारण स्थान तो ईरान में ही कहीं पर था, यह हम पहले देख चुके हैं। मध्यएशिया के अगाड़ी मिश्रवासियों में तो जातिव्यवस्था भी मौजूद थी, जो प्रायः क्षत्री, ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र और चण्डालरूपमें थी । इसलिए इन लोगोंको अनार्य कहना जरा कठिन है। हां, पातालवासी उपरोक्त काश्यपवंशी जातियोंके विषय में यह अवश्य है कि बड़े२ युगोंके अन्तरालमें और अपने मूल देश विजयार्धको छोड़कर चल निकलनेपर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके प्रभाव अनुसार यह अपने प्राचीन रीतिरिवाजोंको पालन
१ - राइस, मालावर क्वार्टलीरिव्यू भाग ३ और इन्डियन सैकृ आफ नोट । २-स्टोरी आफ मैन पृ० १८८ ।