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२०२] भगवान पार्श्वनाथ । देशका रूपान्तर ही है और पणिक एवं पणिका स्पष्टतः पणिक जातिकी अपेक्षा हैं। पहले कुल और जाति अपेक्षा भी लोगोंके नाम रक्खे जाते थे, यह हम देख चुके हैं । अतएव इस कथाके पणिकमुनि पणिक जातिके ही थे, यह स्पष्ट है। इस कथासे पणिकोंका व्यापारी होना तथा भगवान महावीरस्वामीके समय विदेशसे आना भी प्रगट होता है; क्योंकि यदि वह व्यापारी न होते तो उनका सेठरूपमें लिखना वृथा था और वह यहां अपनी जाति अपेक्षा प्रख्यात हुये, यह उनका विदेशी होनेका द्योतक है । यदि वह यहींके निवासी होते तो उनकी प्रख्याति जाति अपेक्षा न होकर दीक्षित नामके रूपमें होना चाहिये थी । अस्तु; पणिक या फणिक जातिकी अपेक्षा इस जातिके राजा फणीन्द्र भी कहलाते थे और यह मनुष्योंके नागलोकमें रहते थे; इसलिये नागकुमारोंके इंद्र धरणेन्द्रका उल्लेख सदृशताके कारण फणीन्द्ररूपमें हुआ मिलता है। यहांपर यह दृष्टव्य है कि पहले विदेशी लोगोंको जैनधर्म धारण करने और मुनि होकर मुक्तिलाभ करनेका द्वार खुला हुआ था । मूलमें जैनधर्मका रूप इतना संकीर्ण नहीं था कि वह एक नियमित परिधिके मनुष्योंके लिये ही सीमित होता । अस्तु,
इस प्रकार भगवान पार्श्वनाथके शासनरक्षक देवता धरणेन्द्र और पद्मावती एवं उनके अनन्यभक्त अहिच्छत्रके नागवंशी रानाका विशद परिचय प्रगट है और उनका निवासस्थान पाताल कहां था, यह भी स्पष्ट होगया है । अतएव आइए, पाठकगण अब अगाड़ी भगवान पार्श्वनाथनीके शेष पवित्र जीवनके दर्शन करके अपनी आत्माका कल्याण करलें।