Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 204
________________ नागवंशजों का परिचय | [ १९९ लाते हैं । काश्यप जैन तीर्थंकरोंका गोत्र रहा है और भगवान ऋष भदेव काश्यपसे नमि - विनमि राजा राज्याकांक्षा करके विजयार्ध पर्वती देशोंके अधिकारी हये थे और वही क्रमशः इन सब प्रदेशों में फैल गए, यह हम पहले बतला चुके हैं। अतएव इस दृष्टिसे उनका कुल अपेक्षा भी आर्य होना सिद्ध है । जैन तीर्थंकरों की अपेक्षा ही कैस्पिया आदि नाम पड़ना आधुनिक विद्वान् भी स्वीकार करते हैं । ' स्वयं जेरूसाल के एक द्वारका नाम वहां पर जैनत्वको "प्रकट करनेवाला था ।' ओकसियाना (Oxiana), बलख और समरकन्दमें भी जैनधर्म प्रकाशमान रहचुका है । (देखो मेजर जनरल "फरलांग की शार्टस्टडीज ८० ६७) बैबीलोनियाका 'अररत' नामक पर्वत 'अर्हत' शब्दकी याद दिलानेवाला है।" अर्हन् शब्दको यूनानवासी 'अरनस' (Urma), रूप में उल्लेख करते थे। जैनधर्म एक समय सारे एशिया में प्रचलित था, यह वहांके जरदस्त आदि धर्मोकी "जैनधर्मसे एकाग्रता बैठ जानेसे प्रकट है । सुतरां आजकलके पुरा तत्व अन्वेषकोंने भी इस बातको स्वीकार किया है कि किसी समय में अवश्य ही जैनधर्म सारे एशिया में फैला हुआ था । " उत्तर में साइबीरिया से दक्षिणको रासकुमारी तक और पश्चिममें कैस्पियन : झीलसे लेकर पूर्व में कमस्करकाकी खाड़ी तक एक समय जैनधमकी विजयवैजयन्ती उड्डायमान थी । तातार लोग 'श्रमण' धर्मके माननेवाले थे, यह प्रकट है । (देखो पीपल्स ऑफ नेशन्स भाग १ ८०३४३ ) १ - रालिन्सन - सेन्ट्रल एशिया २४६ और अं० जैनगजट भाग ३ पृ० १३ । २ - मेजर जनरल फरल्लांगकी “ शार्टस्टडीज " पृ० ३३ । ३ - स्टोरी ऑफ मैन पृ० १४३ | ४ - एशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० १५७ । ५- असहमतसंगम देखो । ६ - डुबाई, डिस्क्रिपशन करैकर... आफ पीपुल आफ इन्डियाकी भूमिका । आफ दी

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