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भगवान पार्श्वनाथ ।
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शास्त्रों के अनुसार अबे सिनिया और इथ्यू पिया बहिर कुशद्वीपमें आ जाते हैं। इस कुशद्वीपमें वह एक कुशस्तंभ और दैत्य, दानव, देव, गंधर्व, यक्ष, रक्ष और मनुष्योंका निवास बतलाते हैं । मनुष्यों में चतुर्वर्ण व्यवस्था भी थी, यह भी वह कहते हैं। इसी कुशद्वीप में यादवोंका आगमन कृष्णके बाल्यकालमें कंसके भयके कारण बताया गया है । कहा गया है कि वे भारतवर्ष से निकलकर असिनियां पहाड़ोंपर आकर रहने लगे थे। उनके नेता यादवेन्द्र कहलाते थे । सो उन्हीं की अपेक्षा यह पर्वत भी इसी नामसे प्रसिद्ध हुये थे । प्राचीन इथ्यू पियन निवासियोंके स्वभाव आदि इन यादवों जैसे ही थे और ग्रीक भूगोलवेत्ता भी उनका आगमन वहां भारतवर्षसे हुआ बतलाते हैं ।" "जैन हरिवंशपुराणके कथनसे भी इस व्याख्याकी पुष्टि होती है । यद्यपि वहां कृष्णसे बहुत पहले उनका 1 आगमन यहां बतलाया गया है । वहां कहा गया है कि २१ वें तीर्थंकर श्री नमिनाथजीके तीर्थमें यदुवंशी राजा शूर थे । इन्होंने • अपना मथुराका राज्य तो अपने छोटे भाई सुवीरको दे दिया था और स्वयंने कुशद्य देशमें परमरमणीय एक शौर्यपुर नामक नगर बसाया था । " आजकल शौर्यपुर मथुराके पास ही माना जाता है; परंतु यह ठीक नहीं है क्योंकि मथुराके आसपासका देश 'कुशद्य' नामसे कभी प्रख्यात् नहीं था । भारतमें कुशस्थल देशको कौशल किन्हीं शास्त्रों में बताया हुआ मिलता है, किन्तु वहांभी शौर्य पुर
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१- पूर्व पृ० ५५ | २-३ - विष्णुपुराण २-४ ३५-४४ । ४-५ - ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० ८७ । ६ - हरिवंशपुराण पृ० ७- भावदेवसूरि, पार्श्वनाथचरित्र सर्ग ५ में कुश रूपल के
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राजा प्रसेन