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१९२] भगवान पार्श्वनाथ । जाति पहले भारतमें मौजूद थी और यह जैन मूर्तियां उन्हीं द्वारा निर्मित हुई थी। किन्तु साथमें यह भी ध्यानमें रखनेकी बात है कि २२वें और २३वें तीर्थंकरोंके शरीरका वर्ण भी जैन शास्त्रोंमें नील बतलाया गया है । मथुरासे जो प्राचीन जैन मूर्तियां आदि निकली हैं उनकी भी सदृशता मिश्र देशके ढंगसे है । खासकर उनमें जो चिन्ह थे वह मिश्रदेश जैसे ही थे । मिश्रदेशमें जो क्रास (Cros) चिन्ह माना जाता है वह अन्य देशोंसे भिन्न समकोणका होता था (+), यह जैनस्वस्तिकाका अपूर्णरूप है । मिश्रवासी अपने को ज्योतिषवादके सृष्टा समझते थे और उनके निकट. ज्योतिषका महत्त्व अधिक था, यह खासियत भी जैनधर्मसे सहशता रखती है। जैनधर्मकी द्वादशाङ्गवाणीके अंतरगत इसका विशद विवरण दिया हुआ था, जिसका उल्लेख श्रवणबेलगोलके भद्रबाहुवाले लेखमें भी है । वौद्धोंके प्रख्यात् ग्रन्थ 'न्यायबिन्दु में जैन तीर्थंकरों ऋषभ और महावीर वढेमानको ज्योतिषज्ञानमें पारगामी होनेके कारण सर्वज्ञ लिखा है। साथ ही मिश्रवासियोंका जो स्फटिक चक्र (Zodiacal stone at Denderab) डेन्डेराहमें है वह जैनियोंके ढ़ाईद्वीपके नकशेसे सदृशता रखता है । मिश्रकी प्रख्याति मेमननकी मूर्ति ( Statue of Memnon ) की एक विद्वान् 'महिमन' की जिनको हम महावीरजी समझते हैं, उनकी बतलाते हैं ।* अतएव इन सब बातोंसे मिश्रदेशमें किसी समय
१-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ. १२२-१२३ २-'ओरियन्टल', अक्टुबर १८०२, पृ० २३-२४ ३-स्टोरी ऑफ मैन पृ० १७२ ४-पूर्व० प. १८७ ५-भद्रबाहु व श्रवणबेलगोल-इन्डियनएन्टीक्वेरी भाग ३ पृ० १५३ ६-न्यायबिन्दु अ० ३. ७-स्टोरी आफ मैन पृ० २२६. *ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ० १९९ .