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नागवंशजोंका परिचय। १७२ नहीं होसक्ता; क्योंकि शौर्यपुरके निकट उद्यानमें एक गंधमादन पर्वत बतलाया है। जहांपर सुप्रतिष्ठ नामक मुनिराजको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी।' गंधमादन पर्वत हिमालयका पश्चिमी भाग माना जाता है; परंतु उसका कोई निकटवर्ती प्रदेश भी कुशद्यदेश नहीं कहलाता है । इसके अतिरिक्त गंधमादन पर्वतका उल्लेख द्वारिकाके निकट रूपमें भी हुआ है; परंतु वहां जैनाचार्य बरड़ो पर्वत श्रेणीको ही गंधमादन मानकर वह उल्लेख करते हैं। हिन्दू शास्त्र द्वारिकाको कुशस्थलीमें बतलाते हैं; परंतु यहां भी वही आपत्ति अगाड़ी आती है कि द्वारिकाके निकट उद्यानमें गंधमादन पर्वत नहीं था। अतएव यह कुशद्यदेश उपरोक्त कुशद्वीप अर्थात् अवेसिनिया ही होना चाहिये; जहांपर यादवोंका आना प्रमाणित है। हिन्दुओंके माने हुए कुशद्वीपमें गंधमादन पर्वतका उल्लेख भी मिलता है। इसलिये अबेसिनियाको ही कुशवदेश समझना ठीक जंचता है । इस अवस्थामें पाताल-लंका और कुशद्यदेश एक ही स्थानपर परिचित होते हैं । इसका अर्थ यह होसक्ता है कि पाताल-लंका भी उपरान्त कुशद्यदेशके नामसे प्रसिद्ध होगई थी जैसे कि हिन्दूशास्त्र पाताललंकाका उल्लेख कहीं करते ही नहीं है और अबेसिनिया इथ्यूपिया एवं न्यूबियाके सारे प्रदेशको कुशद्वी में गर्भित करते हैं; परंतु रावणके समयमें जैन ग्रन्थकार अबेसिनिया और इथ्यूपियाको पाताल-लंकाके जित बतलाये है, पर यह राजा कौशलके थे। इसलिए यहां कुशस्थलसे भाव काशलके ही प्रगट होते हैं ।
१-हरिवंशपुराण पृ० २०५ । २-दी इन्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली भा० १ पृ. १३५ । ३-नेमिनिर्वाणकाव्य ५३-६१ । ४-महाभारत सभा० १३ अ० । ५-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ. १६७.