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भगवान पार्श्वनाथ ।
भाग में सिद्धपुर और सुमेरु पर्वत बतलाये गये हैं । हिन्दुओं का यह सुमेरुपर्वत आजकलका हिंदूकुश पहाड़ है और इसके पास शायद कहीं सिद्धपुर होगा और यह मिश्रसे नीचेको उतरकर ही है । इसलिये यह भी भास्कराचार्यके कथनानुसार ठीक मिलते हैं । अब रहा सिर्फ बड़वाल अर्थात् पृथ्वी की मध्य रेखा ( Equator ) सो 1. मिश्र से दक्षिणकी ओर अफ्रीकामें होकर यह निकाला ही है । इस दशामें भास्कराचार्य के अनुसार भी मिश्र ही लंका प्रमाणित होती है।
इन बातोंको देखते हुये लंकाको मलयद्वीपमें बतलाना ठीक नहीं है । कमसे कम जैनशास्त्रोंके अनुसार तो उसका अस्तित्व मिश्रदेशमें ही प्रमाणित होता है । मलयद्वीप तो उससे अलग था, यह हमारे उपरोक्त वर्णनसे प्रकट है । अ तु;
प्राचीनकाल में मिश्र में जैनधर्मका अस्तित्व होना भी प्रमाणित है । एक महाशयने वहां एक राजाको जैनधर्मानुयायी लिखा भी था ।" वहां प्राचीन धर्मका जो थोड़ा बहुत ज्ञान हमें मिलता है उससे भी सिद्ध होता है कि यहां पहले जैनधर्म अवश्य रहा होगा । सबसे मुख्य बातें जो मतमतान्तरों में प्रचलित हैं वह 1 आत्मा और परमात्मा के स्वरूप सम्बन्धमें हैं। सौभाग्यसे इन विषयोंमें मिश्रवासियों का प्राचीन विश्वास करीब २ जैनधर्मके समान था । प्राचीन मिश्रवासी जैनियोंके समान ही परमात्माको सृष्टिका कर्त्ता हर्ता नहीं मानते थे । उसे वे संपूर्णतः पूर्ण और सुखी ( Infinitely perfect and happy) मानते थे और वह
१ - इन्डि• हि० क्वाटर्ली भाग १ पृ० १३५२ - अग्रवाल इतिहास प० ३ - मिस्ट्रीज ऑफ फ्री० मैसनरी पृ० २७१