Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 194
________________ नागवंशजोंका परिचय। [१८९ इस कारण मिश्रवासियोंकी मान्यतायें भी जैनधर्मके अनुसार ही होना चाहिये । तब ही यह संभव है कि उनके शिष्य यूनानवासी जैनधर्मकी शिक्षा ग्रहण करनेको तत्पर होते।सौभाग्यसे इसी व्याख्याके अनुरूपमें हम मिश्रवासियोंकी मान्यताओंको जैनधर्मके समान ही प्रायः पाते हैं । उनके निकट पशुओंकी रक्षा करना बड़ा आवश्यक कर्म था । सुतरां वे सर्प, मगरमच्छ, बिल्ली. कुत्ता, लंगूर आदि जानवरोंको पूज्य दृष्टिसे देखते थे। सर्प तो उनके निकट बुद्धि और स्वास्थ्य ( Wisdom & health ) के चिह्नरूपमें स्वीकृत है। पंशुओंके प्राणोंका मूल्य समझकर ही वे चमड़ेके जूते तक नहीं पहनते थे वृक्षोंके बल्कलसे ही वे अपने पैरोंकी रक्षा करते थे। उनके पूज्य देवकी मान्यता भी जैनियोंके समान थी। मूलमें उनके तीन देवता-ओसिरिस, इसिस और होरस (Osiris Isis & Horus). मुख्य थे। ओसिरिस और इसिससे वे होरसकी उत्पत्ति मानते थे । ओसिरिसका चिन्ह वे बैल मानते थे, जो धर्मका द्योतक है । इन तीनों देवोंके अतिरिक्त जैनधर्मके समान इतर देवताओं नगररक्षक आदिको भी वे मानते थे। इन तीन देवताओंकी कथा गुप्तवादमें गुंथी हुई मिलती है, जिसका भाव यही है कि ओसिरिस जो शुद्धात्मा है, वह सेठ-सांसारिक मायाके द्वारा नष्ट किया जाकर अपने खास अस्तित्वको प्रायः खो बैठता है और खंडरूपमें नील नदीमें बहा फिरता है किन्तु . .१-दी स्टोरी ऑफ मैन पृ० १८६ २-पूर्व पृ० १६९३-अडेन्डा टू कॉन्फ्लूयन्स ऑफ ऑपोलिट्स पृ.२ . ४-५-६-दी स्टोरी ऑफ मैन पृ० १८६

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