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नागवंशजोंका परिचय । [१७३. (आजकलकी मारेब Mareb) नदी नील (Nile)में आकर मिलती है, वहांपर समीपवर्ती एक 'द्युतिमान' पर्वत बतलाया गया है। इसमें मणियां धातु आदि मिलते थे, इस कारण मणियों का प्रकाशरूप यह पर्वत 'युतिमान' कहलाता था। अतएव द्युतिमान और मणिकांत पर्वत एक ही हों, तो कोई आश्चर्य नहीं । इसप्रकार पाताललंका आनकलके अवेसिनिया और इथ्यूपिया प्रदेश ही होना चाहिये । इथ्यूपियामें जैन मुनियोंका अस्तित्व ग्रीक लोग 'जैम्नोसूफिटम' के रूपमें बतलाते हैं। जैम्नोसूफिटम जैन मुनि ही होते हैं यह प्रगट ही है । अस्तु; यहांपर यह संशय भी नहीं रहती कि अबेसिनिया
और इथ्यूपियामें जैनधर्म कहांसे आया ? यद्यपि जैनशास्त्र तो तमाम आर्यखण्डमें जिसमें आजकलकी सारी पृथ्वी आजाती है एक समय जैनधर्मको फैला हुआ बतलाते हैं। पाताललंकामें जैन मंदिरोंका. अस्तित्व शास्त्रोंमें कहा गया है। __अबेसिनिया और इथ्यूपियाके निवासी बहुत प्राचीन जातिके और उनका धर्म भी प्राचीनतम माना गया है; एवं उनकी भाषा और लिपि करीब २ प्राचीन संस्कृत लिपिके समान ही थी। तथापि उनका संबन्ध यादवोंसे भी था, यह बताया गया है । हिन्दू
१-पूर्व० पृ० १०६ । २-सर विलियम जोन्स इन जैम्नोसूफिट्सको बौद्ध' धर्मानुयायी बताते हैं (पूर्व० पृ० ६),किन्तु उस प्राचीनकालमें बौद्धोंका अस्तित्व भारतके बाहर मिलना कठिन है, क्योंकि बौद्ध धर्मका विदेशोंमें प्रचार सम्राट अशोक द्वारा ही हुआ था । तिसपर सर विलियमके जमाने में जैन और बौद्ध एक समझे जाते थे । इसलिये यहां बौद्धोंसे मतलब जैन ही समझना चाहिए । ३-इन्साइक्लोपेडिया ब्रेटिनिका भाग ३५। ४-ऐशियाटिक रिसर्चेज भाग ३ पृ. १३९ । ५-पूर्व. पु. ४-५ ।