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भगवान पार्श्वनाथ |
yuva मध्य एक महा कमलवन है सो वहांसे विमानमें बैठकर रावण दक्षिण समुद्रकी ओर लंकाको चला और त्रिकूटांचल पर्वत पर पद्मरागमणिमई चैत्यालय देखे । इधर सूर्यरज और रक्षरज बानरवंशियोंने भी पाताल लंकाके अलकनगर से निकलकर किहकूपुर बानरद्वीप में जा घेरा । राजा इंद्रके दिकूपाल यमने उनसे युद्ध किया, जिसमें बानरवंशी कैदी हुए । मेघलवनमें नरक नामक बंदीगृह में यह कैद रक्खे गए | इसपर रावणने यमको आ घेरा । यम भागकर राजा इंद्रके पास रथनूपुर जा पहुंचा । रावण लौटकर त्रिकूटाचल पर्वतको चला गया, जहांसे समुद्र दिखाई पड़ता था । उपरांत किहकंधपुर में बानरवंशी सूर्यरजके पुत्र बाली और सुग्रीव हुए। पाताल लंका में खरदूषण रावणका बहनोई राज्याधिकारी हुआ । पाताल - लंका में मणिकांत पर्वत था । बाली वैराग्य पा मुनि होगये, रावण दिग्विजयको निकले सो सुग्रीवने उससे मैत्री कर ली । पहले उनने अंतरद्वीप वश किये फिर संध्याकार, सुबेल, हेमा, पूर्ण, सुयोधन, हंसद्वीप, बारिहव्यादि देशोंके विद्याधर राजाओंसे उनने भेंट ली । उपरान्त रथनूपुर के राजा इंद्रको वश करने रावण चला सो पहले अपने खरदूषण बहनोई के पास पाताल लंका में डेरा डाले | हिडम्ब, हैहिडिम्ब, विकट, त्रिजट, हयमाकोट, सुजट, टंक, सुग्रीव, त्रिपुर, मलय, हेमपाल, कोल, वसुंदर इत्यादि राजा उसके साथ थे । खरदूषण कुंभ, निकुम्भ, आदि राजाओं के साथ इनके साथ होलिया | यहांसे निकलकर रावणको सूर्यास्त विंध्याचल पर्वत के समीप हुआ । नर्मदा के तट रावण ठहर गये । बहां माहिष्मती राजा सहस्त्ररश्मिकी केलि-क्रीड़ासे रावणकी पूजा में