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२६८] भगवान पार्श्वनाथ । शक्तिहीन हुये सो गरुडेन्द्रको रामचन्द्रने याद किया। उसने सिंहवाहन और गरुड वाहन नामक देव भेजे; जिनके प्रतापसे सुग्रीव भामण्डलका नागपाश दूर हुआ । गरुड़के पखोंकी पवन क्षीरसागरके जलको क्षोभरूप करने लगी सो वह नाग वहांसे विलीन होगए । इन्द्र नीलमणिकी प्रभासे युक्त रावण उद्वत रूपसे संग्राम करने लगा, विद्या साधने लगा और फिर आखिर मृत्युको प्राप्त हुआ था । लक्ष्मणने कुबरके राजा बालखिल्यकी पुत्री कल्याणमालासे यहीं विवाह किया था और फिर लवण समुद्र लांघकर अयोध्या पहुंचे थे । इस तरह श्रीपद्मपुराणमें यह कथन है । अब इस कथनके आधारसे हमें पातालपुरका पता लगाना सुगम होजाता है । ... उपरोक्त कथनसे यह स्पष्ट है कि भारतसे दक्षिण पश्चिमकी ओर लंका थी और लंका पहुंचनेके पहले पाताललंका पड़ती थी, क्योंकि पाताल-लंका ही रावणको दिग्विजयके लिए निकलते समय पहले आई थी। फिर पाताल-लंकासे खरदूषणने राम-लक्ष्मणपर जो दंडकवनमें आक्रमण किया था, सो उसकी खबर रावणको नहीं हुई थी; क्योंकि पाताल-लंकासे भारत आते हुये बीच में लंका नहीं पड़ती थी-वह उससे ऊपर रह जाती थी यह प्रगट होता है । किंतु हनूमानजीको लंका जाते हुये मार्गमें पाताललंका नहीं पड़ी थी; इसका यही कारण हो सक्ता है कि वे दूसरे मार्गसे गये थे । यही बात राम-लक्ष्मणके आक्रमणकी समझना चाहिये । वहां भी पाताल लंकाका उल्लेख नहीं मिलता है। किंतु यहां यह संभव है कि वे पाताल-लंका तक पहुंच ही न पाये हों
और हंसद्वीपमें रणभूमि रचकर बैठ गए हों, जो पाताल-लंकाके इतर भागमें हो। इस विषयमें निश्चयरूपसे जाननेके लिये हमें