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नागवंशजों का परिचय !
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हुआ । इसे लाल मुखवाला बिद्याधर लिखा है । इसे विद्याधरोंने हराया था, सो यह वानरद्वीप छोड़ पाताल - लंकामें आया था । राक्षसवंशी भी वहीं पहुंचे। निर्धात लंकाका राजा हुआ । बहुत दिन पाताल - लंका में रहते किहुकंधका जी ऊब उठा । उसने दक्षिण समुद्र तटपर करत वनके पहाड़पर किहुकंधपुर नगर वसाया । कर्णपर्वतपर इसके जमाईने वर्णकुण्डल नगर वसाया । पाताललंकाके स्वामी सुकेशके तीन पुत्र थे माली, सुमाली और माल्यवान | निर्घात् कुटुम्बी दैत्य कहलाते थे, सो इनसे उक्त तीन पुत्रोंने लंका वापस जीत ली । यज्ञपुरके विश्व कौशिकी के पुत्र वैश्रवणको वहां का राजा बनाया । पाताललंका में सुमालीका रत्नश्रवा रहा । इसने पुष्पकवन में विद्या साधी । वहां केसकी नामक राजपुत्री इसकी सेवामें रही। विद्या सिद्ध होनेपर इसने वहीं पुष्पांतक नगर बसाया । इन्हीं यहां रावण का जन्म हुआ । बालपने में रावणने उस हारको उठा लिया था जिसकी रक्षा एक हजार नागकुमार करते थे । उपरांत इसने भीम नामक वनमें एक स्वयंप्रभ नामक नगर बसाया था । रावणका विवाह विजयार्धपर्वतकी दक्षिण श्रेणीके नगर असुसंगतिके राजा मयकी पुत्री मंदोदरीसे हुआ था । राजा मय विद्या: घर ही था, परंतु दैत्य कहलाता था । लंकाके राजा वैश्रवणके वंशज यक्ष कहलाते थे । वैश्रवण और रावणमें युद्ध हुआ था, जिसमें वैश्रवणकी पराजय हुई थी । लोग उसे रणभूमिसे उठाकर यक्षपुर लेगए थे । वहां उसने दिगम्बरी दीक्षा धारण कर ली थी।
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* लाल मुखत्राले 'रेड इन्डियन्स' आज उत्तरीय अमेरिकामें मिलते हैं । स है वानरवंशी राजाओं का राज यहीं रहा हो ।