Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 140
________________ धरणेन्द्र- पद्मावती - कृतज्ञता ज्ञापन | [ १३५ इनका आसन राजहंस बतलाया गया है ।' किन्तु कहीं २ इनको तीन वाले छत्र मंडित कहा गया है, यथा: 'फन तीन सुमनलीन तेरे शीस बिराजै । जिनराज तहाँ ध्यान धरें आप बिराजै ॥ फनिइंदने फनिकी करी जिनंदपै छाया । उपसर्ग वर्ग मेटिके आनन्द बढ़ाया ॥ जिनशासनी हंसासनी पद्मासनी माता । भुज चार फल चारुदे पद्मावती माता ॥' यहां हंसनीके साथ इनका उल्लेख पद्मासनी रूपमें भी किया हुआ है । अन्यत्र भी यही कहा गया है और साथ ही इनको पद्मवनमें निवसित बतलाया है; यथा 'पद्म पद्मासनस्थे व्यपनयदुरितं देवि देवेन्द्र वंद्ये ॥ ६ ॥' 'मातर्पद्मनि पद्मरागरुचिरे पद्मप्रसूतानने । पद्म पद्मवनस्थिते परिलसत्पद्माक्ष पद्मालये ॥ पद्मामोदनि पद्मनाभिवरदे पद्मावती याहि मां । पद्मोलासन पद्मरागरुचिरे पद्मप्रसृनार्चिते ॥ २७॥' .3 १. पूर्व प्रमाण और करकंडुचरितमें भी पद्मावती देवीको पांच फणवाला बतलाया है; यथा 66 समच्चिविपूजिविज्झायइजाव । समागयदेवय पोमावयताम । समंथरलालसकोमल आणि कुणंतियकाविअउव्वियभाउ ॥ विणिम्मियरूव समिद्धिखणेण - सरीर इं रत्तिय सुद्धमणेण । करेहिं चउंहिं करंतिगुल - सयोछयभिंग समुद्द मुणालु ॥ सकुंडल कण्णफुरंतक वोल - सण्णडरकिंकिणि मेहलरोल । फणफण पंचसिरेणधरंति-पसणियणिम्मल कविकरति ॥" J - संधि ७. २. वृन्दावन विलास पृ० २१ । ३. जैन गुटका नं० ४४ आरा - बृहदू पद्मावतीस्तोत्र - पृ० २७-२८ ।

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