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धरणेन्द्र - पद्मावती कृतज्ञता ज्ञापन |
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'कि यह नागलोग मनुष्य ही थे ।
नागवंशी राजाओं का इतिहास अभी प्रायः अंधकारमें है; 'परन्तु उसपर अब प्रकाश पड़ने लगा है । अबतक के प्रकाशसे यह ज्ञात होता है कि इनका अस्तित्व महाभारत युद्ध के पहलेसे यहां था। जैन पद्मपुराणके पूर्वोलिखित उद्धरणसे भी यही प्रकट है । सचमुच महाभारतके समय अनेक नागवंशी राजा यहां विद्यमान थे । तक्षक नागद्वारा परीक्षितका काटा जाना और जन्मेजयका सर्पसत्र में हजारों नागों के होमनेके हिन्दूरूपक इसी बातके द्योतक हैं कि नागवंशी तक्षकके हाथसे परीक्षित मारा गया था और उसके पुत्र जन्मेजय ने अपने पिताका वैर चुकानेके लिए हजारों नागों को मार डाला । तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, मणिनाग आदि इस वंशके प्रसिद्ध राजा थे । विष्णुपुराणमें ९ नागवंशी राजाओंका पद्मावती (पेहोआ, ग्वालियर राज्य में), कांतिपुरी और मथुरा में राज्य करना लिखा है । वायु और ब्रह्मांडपुराण नागवंशी नव राजाओंका चंपापुरीमें और सातका मथुरामें होना बतलाते हैं। क्षत्री और ब्राह्मण लोगोंने इनके साथ विवाह संबंध भी किए थे। इनकी कई शाखायें थीं, जिनमें की एक टांक या टाक शाखाओंका राज्य वि० सं० की १४ वीं और ११ वीं शताब्दितक यमुना के तटपर काष्ठा या काठा नगरमें था । मध्यप्रदेशके चक्रकोव्य में वि० सं० की ११ वीं से १४ वीं और कवर्धा में १० वीं से १४ वीं शताब्दितक नागवंशियोंका अधिकार रहा था । इनकी सिंह शाखाका राज्य - दक्षिण में रहा था । निजामके येलबुर्ग स्थान में इनका राज्य १०वींसे १३वीं शताब्दितक विद्यमान था । राजपूताने में भी नागलोगोंका