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१६० ] भगवान पार्श्वनाथ । कुछ मालूम हो गया है, पर अभीतक नागोंके निवासस्थान पाताल लोकके विषयमें कुछ भी ज्ञात नहीं हुआ है । आधुनिक विद्वानोंने दैत्य, दानव, असुर, नाग, गरुड़ आदिका निवास स्थान हूण जातियोंका मूलगृह मध्यऐशिया और तुर्किस्तान बतलाया है।' उनके अनुसार नाग, गरुड आदि सब ही हूण अथवा शक जातियोंके ही भेद हैं । इसको उन्होंने सप्रमाण सिद्ध भी किया है। उनका यह कथन जैन शास्त्रोंसे भी ठीक ही प्रतिभाषित होता है, यह हम यहांपर पातालके विषयमें विचार करते हुए निर्दिष्ट करेंगे।
इस स्पष्टीकरणके लिये हमें मुख्यतः श्री पद्मपुराणजीका आधार लेना पड़ेगा। इस पुराणमें श्री रामचन्द्रजी व रावणका चरित्र वर्णित है । संक्षेपमें उसपर एक नजर डाल लेना हमारे लिये परमावश्यक है । अस्तु; इसमें लिखा है कि सम्राट् सगरचक्रवर्तीके समयमें विनयाकी दक्षिण श्रेणिमें एक चक्रवाल नगरका राजा पूर्णधन था । विहायलक नगरके राना सहस्रनयनने सम्राट् सगरकी सहायतासे इसे तलवारकी घाट उतार दिया। इसका पुत्र मेघवाहन भागकर भगवान अजितनाथजीके समवशरणमें पहुंचा। वहांपर राक्षसदेवोंके इन्द्र भीम और सुभीम उससे प्रसन्न हुये और उसे लवण समुद्रमेंके अनेक अन्तर द्वीपोंमेंसे एक राक्षस द्वीपका अधिपति बना दिया। यह राक्षसद्वीप सात सौ योजन लम्बा
और चौड़ा बताया गया है और इसके मध्यमें त्रिकूटाचल पर्वत वतलाया है । यहां योजनका परिमाण फीयोजन चार कोश समझना उचित है । यह त्रिकूटाचल पर्वत रत्नजटित था। इसी पर्वतके
१-पूर्वभाग १ पृ. १३४ ।