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१३८ ] भगवान पार्श्वनाथ ।
भगवान इसीलिये यह कहना होगा कि अन्ततः श्वेताम्बरोंके अनुसार भी धरणेन्द्र ही पार्श्वस्वामीके शासन देवता थे । प्रत्येक जैन तीर्थकरके । शासन रक्षक एक देव और देवी बतलाये गये हैं। उसहीके अनुसार श्रीपार्श्वनाथजीके शासन रक्षक धरणेन्द्र और पद्मावती थे। श्रीभावदेवसुरिने धरणेन्द्र-पार्श्वका रूप इस तरह चित्रित किया है । उसे एक कृष्णवर्णका चार भुजाओंवाला यक्ष बतलाया है । मूलनाम 'पार्श्व' लिखा है । तथा कहा है कि वह सर्पका छत्र लगाये रहता था । उसका मुंह हाथी जैसा था, उसके वाहन कछुबेका था, उसके हाथोंमें सर्पथेऔर वह भगवान पार्श्वका भक्त बन गया था।' दिगम्बर जैनशास्त्रोंमें उसका मुख सुडौल और सुन्दर मनुष्यों जैसा बतलाया है। उसके साथ ही उन श्वेतांबराचार्यने पद्मावतीदेवीको स्वर्णवर्णकी, विशेष शक्तिशाली, ककुंट सर्पके आसनवाली बतलाया है । उसे सीधे दो हाथोंमें क्रमशः कमल और दंड एवं अन्य दो हाथोंमें एक फल और गदा लिये कहा गया है । यहां भी दिगम्बर मान्यतासे जो अन्तर है वह प्रगट है; परन्तु मूलमें दोनों ही उसको यक्षयक्षिनी और चार हाथवाले जिन शासनके रक्षक स्वीकार करते हैं। निस समय भगवान पार्श्वनाथजीपर कमठके जीवने उपसर्ग किया था, जैसे कि अगाड़ी लिखा जायगा, उस समय धरणेन्द्र पद्मावतीने आकर उनकी सहायता की थी। इसीलिये वे जैन शासन रक्षकदेव माने गये हैं। श्रीआचार्य वादिराजसरि यही लिखते हैं:'पद्मावती जिनमतस्थिति मुन्नयतीतेनैवतत्सदसि शासनदेवतासीत् । तस्याः पतिस्तु गुणसंग्रह दक्षचेता यक्षो बभूव जिनशासनरक्षणज्ञः ॥४२॥'
१-पूर्व पुस्तक सर्ग ७ श्लो. ८२७...। २-पूर्व पुस्तक सर्ग ७. श्लो. ८२८ :