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भगवान पार्श्वनाथ ।
समय इसे बड़ा ही भव्य नगर बतलाया गया है । उसकी समानताका और कोई नगर उस समय धरातलपर नहीं था । वह तीर्थकर भगवानका जन्मस्थान था और अपूर्व था । उसके देखते साथ ही मनुष्योंकी तो बात क्या स्वर्गलोकके देवोंके मन भी मोहित होजाते थे। वह प्राचीनकालसे ही तीर्थराजके रूपमें तब भी प्रसिद्धि पा चुका था। श्री पार्श्वनाथजीके बहुत पहले हुये तीर्थकर श्री सुपार्श्वनाथजी इस नगरीको पहले ही अपने जन्मसे पवित्र कर चुके थे। इनसे भी पहले यहां जैनधर्मका शांतिदायक प्रकाश फैल चुका था ! यही नहीं इस नगरका जन्म ही स्वयं जैनियोंके प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेवकी आज्ञासे हुआ था और यहांके सर्व प्रथम राजा अकंपन नामक इक्ष्वाकुवंशीय महान् क्षत्री थे, यह जैनियोंकी मान्यता है, और इस पवित्र तीर्थराजका विशद वर्णन जैन शास्त्रोंमें खूब ही मिलता है। भगवान पार्श्वनाथके समय इसकी विशालता प्रकट करनेको नैन कवियोंके पास पर्याप्त शब्द ही नहीं थे । उनको यही कहना पड़ा था कि:___ " शोभा जाकी कही न जाय, नाम लेत रसना शुचि थाय ।" ___ आजका बनारस ही यह पवित्र धाम है । आज भी उसकी जो प्रख्याति है वह उसके पूर्व गौरवकी प्रत्यक्ष साक्षी है । जैनशास्त्रोंमें कहा गया है कि इस अवसर्पिणी कालके तीन काल जब गुजर चुके थे और चौथा प्रारम्भ हुआ ही था तब वहांपर सभ्यताकी सृष्टि भगवान ऋषभदेव द्वारा हुई थी। ऋषभदेवके पहले
१-बौद्धोंने भी बनारसको प्राचीनकालसे ऋषियोंका स्थान बतलाया था। २-उत्तरपुराण पृष्ट ५१ । ३-आदिपुराण पर्व १६।१२८-१९०. व२४१-२७५।