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भगवान पार्श्वनाथ |
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एक अन्य जातक में कौशलके राजा दब्बसेन द्वारा काशीके एक राजाके पकड़े जानेका उल्लेख है । दब्बसेनने राजाको हथकड़ीबेड़ी डलवा कैद कर दिया था, परन्तु वह अपने ध्यानके बल ऊपर आकाश में बैठे नजर आए । यह देखकर दब्बसेनने उनसे क्षमा प्रार्थना की और उनका राज्य उन्हें वापिस दे दिया । एक दूसरे जातक में लिखा है कि कौशलके राजकुमार दीघावुने काशी के राजाको वनमें सोता पाकर पकड़ लिया । इस राजाने यद्यपि दीघाचुके माता-पिता को तलवार के घाट उतारा था, पर इसने उसको मारा नहीं; प्रत्युत जरा ही धमकाकर उसे मुक्त कर दिया । इसपर राजाने उसे अपनी पुत्री परणा दी और उसका राज्य उसे वापस दे दिया । सारांशतः इन जातक कथाओंसे काशी - कौशलका पारस्परिक सम्बन्ध स्पष्ट प्रगट है । जैन शास्त्र के इस कथन से कि रामचन्द्रजी कौशलाधीश दशरथकी आज्ञासे काश में थे, यह स्पष्ट होजाता है कि अवश्य ही एक समय लका अधिकार था । फिर श्री ऋषभनाथजीके काशी कौशलाधिप सम्राट् भरतके आधीन थी, परन्तु भगवान पार्श्वनाथ के समय में उनमें आपस में मित्रता थी और वे स्वतंत्र थे, यह प्रकट होता है; क्योंकि अयोध्याके राजा जयसेनका पार्श्वभगवानको मित्रवत् भेंट भेजने का उल्लेख जैनशास्त्रों में मिलता है ।" इस प्रकार काशी और कौशलका पारस्परिक सम्बन्ध उस जमाने में था ।
राज्य करने लगे काशीपर कौश
तीर्थकालमें भी
१ - जातक भाग ३ पृ० २०२ । २- जातक भाग ३ पृ० १३९१४० । ३-उत्तरपुराण पृ० ३६९ । ४ - आदिपुराण पर्व २६-३३ । ५- पार्श्वपुराण ( बंबई ) पृ० ११४ |